शत-प्रतिशत गरीबी दूर करता है ये हजारों साल पुराना उपाय...
वैसे तो भाग्य या किस्मत का निर्धारण पुराने कर्मों के आधार पर ही होता है लेकिन विशेष परिस्थितियों में अशुभ समय को कुछ पुण्य कर्मों द्वारा इसे बदला भी जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति को अत्यधिक गरीबी का सामना करना पड़ता है तो आचार्य चाणक्य ने एक सटिक वैदिक तरीका बताया है-दारिद्रयनाशनं दानं शीलं दुर्गतिनाशनम्।
अज्ञाननाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी।।
इस श्लोक का अर्थ है कि केवल दान और पुण्य कर्मों से ही दरिद्रता का नाश हो सकता है। दुर्गति या दुरवस्था का शील या गुणों से नष्ट किया जा सकता है। बुद्धि अज्ञानता को नष्ट कर देती है। किसी भी प्रकार के डर को विचार नष्ट कर देते हैं।
आचार्य कहते हैं यदि किसी व्यक्ति को धन अभाव का सामना करना पड़ रहा है तो उसे दान-पुण्य के प्रभाव से राहत मिल सकती है। दान से दरिद्रता दूर होती है। वैदिक काल से ही मान्यता है कि दान से हमारे पापों का नाश होता है। पुराने किए पापों के अशुभ फल समाप्त होते हैं। दान करने वाले व्यक्ति से सभी देवी-देवता प्रसन्न रहते हैं और ज्योतिष संबंधी ग्रह दोष भी समाप्त हो जाते हैं। इसी कारण दान करने वाले व्यक्ति को कभी भी धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है।
यदि कोई व्यक्ति समाज में या परिवार में दुखों का सामना कर रहा है तो वह अपने गुणों और नम्र व्यवहार से इन कष्टों को दूर कर सकता है। जो व्यक्ति सदैव धार्मिक नियमों का पालन करता है उसकी मदद स्वयं भगवान करते हैं। ऐसे लोगों को किसी भी प्रकार के दुखों का सामना नहीं करना पड़ता है। अत: ऐसे लोगों को किसी भी प्रकार की परेशानियों से डरने की आवश्यकता नहीं है।
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