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Thursday, 24 November 2011

ये पौधा

 ये पौधा...


जड़ी बुटियों के भी तंत्र में अनेक प्रयोग है। जिनके माध्यम से तंत्र के षट्कर्म जैसे मारण, उच्चाटन, सम्मोहन, वशीकरण आदि सभी संभव है। ऐसा ही उपयोग लटजीरा और मदार का भी है। लटजीरा उत्तरभारत में लगभग हर जगह मिल जाता है । बहुवर्षायु क्षुप, छोटे बीजों की मंजरी युक्त , इसके बीज यदि कपड़ों से स्पर्श हो जाते है तो चिपक जाते हैं । आक को मदार और अकौआ भी कहते हैं।

- लटजीरा देहातों में जंगल तथा घरों के आसपास बरसात में एक पौधा उगता हैं. यह लाल एवं श्वेत किसी भी रंग का हो सकता हैं।
- उत्तम लीवर टोनिक, शोथहर, वेदना शामक, कृमिहर, शिरोविरेचन, हृदयरोग नाशक, रक्तज अर्श नाशक, अपामार्ग के बीजो के नस्य लेने से छींके आती है और पुराना नजला और गर्दन के उपर के रोगों मे लाभ मिलता है।
- लाल लटजीरा की टहनी से दातुन करने पर दांत के रोग से मुक्ति मिलेगी तथा सम्मोहन की शक्ति में वृद्धि होगी।
- लटजीरा की जड़ को जलाकर भस्म बना लें उसे दूध के साथ पीने से संतानोत्पति की क्षमता आ जाती हैं।
- मदार, अर्क अथवा आक के नाम से प्राय: सभी इस पौधे से परिचित हैं।
- इसके पुष्प शिवजी को अर्पित किये जाते हैं लाल एवं श्वेत पुष्प के मदार के पेड़ होते हैं।

- श्वेत पुष्प वाले मदार का तांत्रिक प्रयोग होता हैं।

- रविपुष्प के दिन मदार की जड़ खोद लाए, उस पर गणेशजी की मूर्ति बनाये।
- वह मूर्ति सिद्ध होगी परिवार के अनेक संकट मात्र मूर्ति रखे से ही दूर हो जायेंगे यदि गणेशजी की साधना करनी हैं,तो उसके लिए सर्वश्रेष्ठ वह मूर्ति होगी।
- रविपुष्प में उसकी जड़ को बंध्या स्त्री भी कमर में बंधे तो संतान होगी।
- रविपुष्प नक्षत्र में लायी गयी जड़ को दाहिने हाथ में धारण करने से आर्थिक वृद्धि होती है।

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