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Friday, 2 September 2011

सप्तशती सिद्ध सम्पुटमन्त्र


सप्तशती सिद्ध सम्पुटमन्त्र


       श्रीदुर्गासप्तशती के कुछ  सिद्ध सम्पुट मन्त्र
      
१) सामूहिक कल्याण के लिये
       देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
       निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या ।
       तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
       भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ॥
      
२) विश्व के अशुभ तथा भय का नाश करने के लिये
       यस्याः प्रभावमतुलं भगवानन्तो
       ब्रह्म हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च ।
       सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
       नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ॥
      
३) विश्व की रक्षा के लिये
       या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
       पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।
       श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
       तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥
      
४) विश्व के अभ्युदय के लिये
       विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
       विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम् ।
       विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
       विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ॥
      
५) विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये
       देवि प्रपन्नर्तिहरे प्रसीद
       प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
       प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
       त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥
      
६) विश्व के पापतापनिवारण के लिये
       देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते
       र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः ।
       पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु
       उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् ॥
       
७) विपत्तिनाश के लिये
       शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
       सर्वास्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
      
८) विपत्तिनाश और् शुभ की प्राप्ति के लिये
       करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी
       शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ।
      
९) भयनाश के लिये
क) सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
       भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥
      
ख) एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितं ।
       पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥
      
ग) ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् ।
       त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते ॥
      
१०) पापनाश के लिये
       हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
       सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽनः सुतानिव ॥
      
११) रोगनाश के लिये
       रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
       रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
       त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
       त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥
      
१२) महामारीनाश के लिये
       जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
       दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥
      
१३) आरोग्य और सौभाग्य प्राप्ति के लिये
       देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
       रुपं देहि यशो जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
      
१४) सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिये
       पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
       तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ॥
      
१५) बाधाशान्ति के लिये
       सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्याखिलेश्वरि ।
       एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥
      
१६) सर्वविध अभ्युदय के लिये
       ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां
       तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः ।
       धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा
       येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना ॥
      
१७) दारिद्र्यदुःखादिनाश के लिये
       दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
       स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
       दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
       सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता ॥
      
१८) रक्षा पाने के लिये
       शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके ।
       घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च ॥
      
१९) समस्त विद्या_ओं की और् समस्त स्त्रियों में
       मातृभाव की प्राप्ति के लिये
      
       विद्या समस्तास्तव देवि भेदाः
       स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
       त्वैकया पूरितमम्बयैतत् ।
       का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्त्तिः ॥
      
२०) सब प्रकार के कल्याण के लिये
       सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
       शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
      
२१) शक्तिप्राप्ति के लिये
       सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
       गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
      
२२) प्रसन्नताप्राप्ति के लिये
       प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ।
       त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ॥
      
२३) विविध उप्द्रवों से बचने के लिये
       रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा
       यत्रारयो दस्युबलानि यत्र ।
       दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये
       तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ॥
      
२४) बाधामुक्त होकर धन और् पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
       सर्वबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः ।
       मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॥
      
२५) भुक्तिमुक्ति की प्राप्ति के लिये
       विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम् ।
       रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
      
२६) पापनाश तथा भक्तिप्राप्ति के लिये
       नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे ।
       रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
      
२७) स्वर्ग और मोक्ष के लिये
       सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी ।
       त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोत्तयः ॥
      
२८) स्वर्ग और मुक्ति के लिये
       सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।
       स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
      
२९) मोक्ष की प्राप्ति के लिये
       त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
       विश्वस्य बीजं परमासि माया ।
       सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
       त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ॥
      
३०) स्वप्न मे सिद्धिअसिद्धि जानने के लिये
       दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके ।
       मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय ॥


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