ग्रह पीडा निवाशक तान्त्रक तावीज
जगत्सूते धाता हरिरवति रूद्र: क्षपयते।
तिरस्कुर्वन्ने तत्स्वमति वपुरीशस्तिरयति।।
सदापूर्व: सर्व तदिदतनु गृलाति च शिव।
स्तवाज्ञामालम्ब्य क्षणचलितयोभ्रूलतिकयों:।।
स्वच्छ होकर इस साçžवक और परम शक्तिशाली यन्त्र को अनार की कलम द्वारा गोरोचन व कुंकुम से भोजपत्र पर लिखें। फिर यन्त्र को किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करें और उसे दृष्टि के सम्मुख रखकर उक्त मन्त्र का 101 बार जप करें। तदुपरान्त यन्त्र को बांबे के तावीज में भरकर, तावीज को कंठ या भुजा में धारण करें। यह तावीज बडा प्रभावी है। इसके हर समय साथ रहने से दुष्ट ग्रहों का कुप्रभाव नहीं पडता और ग्रहों की शान्ति होती है। हर प्रकार की विपत्ति का नाश होता है।
जगत्सूते धाता हरिरवति रूद्र: क्षपयते।
तिरस्कुर्वन्ने तत्स्वमति वपुरीशस्तिरयति।।
सदापूर्व: सर्व तदिदतनु गृलाति च शिव।
स्तवाज्ञामालम्ब्य क्षणचलितयोभ्रूलतिकयों:।।
स्वच्छ होकर इस साçžवक और परम शक्तिशाली यन्त्र को अनार की कलम द्वारा गोरोचन व कुंकुम से भोजपत्र पर लिखें। फिर यन्त्र को किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करें और उसे दृष्टि के सम्मुख रखकर उक्त मन्त्र का 101 बार जप करें। तदुपरान्त यन्त्र को बांबे के तावीज में भरकर, तावीज को कंठ या भुजा में धारण करें। यह तावीज बडा प्रभावी है। इसके हर समय साथ रहने से दुष्ट ग्रहों का कुप्रभाव नहीं पडता और ग्रहों की शान्ति होती है। हर प्रकार की विपत्ति का नाश होता है।
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