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Thursday 2 February 2012

ग्रह पीडा

ग्रह पीडा निवारण हेतु संपूर्ण साधना
सामग्री          - जलपात्र, घी का दीपक, नवग्रहयन्त्र, अगरबत्ती।
माला            - स्फटिक माला।
समय           - दिन या रात का कोई भी समय।
आसन          - सफेद रंग का सूती आसन।
दिशा           - पूर्व दिशा।
जप संख्या   - इक्यावन हजार।
अवधि          - जो भी संभव हो।
मन्त्र :-
ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरान्तकारी भानुशशी भूमि-सुतो बुधश्च।
गुरूश्चशुक्र: शनि राहु केतव: सर्वे ग्रहा शान्ति करा: भवन्तु।।


किसी भी रविवार से यह प्रयोग प्रारम्भ करना चाहिए। सामने सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर नवग्रह यन्त्र स्थापित कर लेना चाहिए, उस पर केसर का तिलक कर घी का दीपक जलाकर मन्त्र जप पूरा होने पर उस यन्त्र को अपने घर के पूजा स्थान में स्थापित कर देने से सभी प्रकार के ग्रह-दोष समाप्त हो जाते हैं।

हवन के लिए अलग-अलग मन्त्र

ग्रहों की पीडा हेतु पूर्ण साधना के अन्तर्गत सभी ग्रहों को शान्त करने वाला मन्त्र और हवन का पूरा विधान दिया गया है। किसी भी ग्रह के कुपित होने पर भी इसी प्रकार हवन किया जाता है। परन्तु इसमें दो अन्तर होते हैं। ग्रह विशेष के लिए हवन करते समय उस ग्रह को प्रिय वृक्ष की लकडी का प्रयोग करते हैं। इसके साथ ही उस ग्रह से सम्बन्धित मन्त्र ही बोला जाता है। नीचे पहले इन ग्रहों से सम्बन्धित लकडियां और फिर उनके मन्त्र दिए जा रहे हैं-

सूर्य - मदार          चंद्र - पलाश             मंगल - खैर   
बुध - अपमार्ग       गुरू - पीपल             शुक्र - गूलर
शनि - शर्मा           राहु - दूर्वा               केतु - कुशा    

    
सूर्य - ओम ह्नौं ह्नीं ह्नौं स: सूर्याय स्वाहा।
चंद्र - ओम स्त्रौं स्त्रीं स्त्रौं स: सोमाय स्वाहा।
मंगल - ओम क्रौं क्रीं क्रौं स: भोमाय स्वाहा।
बुध - ओम ह्नौं ह्नीं स: बुधाय स्वाहा।
गुरू - ओम ज्ञौं ज्ञीं ज्ञौं स: बृहस्पतयै स्वाहा।
शुक्र - ओम ह्नौं ह्नीं ह्नौं स: शुक्राय स्वाहा।
शनि - ओम षौं षीं षौं स: शनैश्चयराय स्वाहा।
राहु - ओम छौं छीं छौं स: राहवे स्वाहा।
केतु - ओम फौं फीं फौं स: केतवे स्वाहा।

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