ब्रहम विद्या
कितने गूढ विषय हैं,जो संसार के सामने लोक कल्याण की कामना से प्रस्तुत ही नही हुये हैं,कितना ही जोर हम मन्त्र उच्चारण के लिये लगाते हैं,और कामना पूरी ही नही हो पाती है,इसका एक महत्वपूर्ण कारण जो मैने अपने ही अनुभव से पाया उसमे हम अपने आप ही कमी कर जाते है,ब्रहम विद्या का पाठन रोजाना जो करता है,उससे कोई मन्त्र छुपा नही रह सकता है,हर कोई जनता है कि हिन्दी की बाबनाक्षरी ही ब्रहम विद्या है,और पढने के पहले सस्वर पाठन करना जरूरी है,सस्वर पाठन से मुहं और गले तथा ह्रदय के बटन उसी प्रकार से चलने लगते हैं जिस प्रकार से कम्प्यूटर के की बोर्ड पर अक्षर
-अं आं इं ईं उं ऊं लृं लृं ऋं ऋं ओं औं अं अं: कं खं गं घं डं. चं छं जं झं य़ुं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं त्रं ज्ञं
हर अक्षर को थोडा सा रुक कर पढना चाहिये,और एक माला रोज की करनी चाहिये,जो लोग बहुत बडी परीक्षा मे बैठने के लिये जा रहे हैं,उनके लिये यह सफ़लता की बहुत बडी कुन्जी है
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