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Monday 1 August 2011

मातृ-पितृ ऋण मुक्ति


जन्म पत्रिका में यदि पितृ ऋण दोष हो तो व्यक्ति को अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। पितृ एवं मातृ ऋण कुंडली में किस तरह बनता है और उसके क्या परिणाम होते हैं। इन्हें जानने के साथ ही उनके निवारणार्थ ज्योतिष में क्या उपचार हैं, इन्हें जानें।
पितृ ऋण योग: जन्म पत्रिका के नवम भाव में बृहस्पति एवं शुक्र की युति हो। पंचम, नवम, द्वितीय एवं द्वादश भाव में कोई भी ग्रह हो। चतुर्थ में बुध एवं नवम में चंद्र हो। अष्टम में बुध एवं नवम में बृहस्पति होने पर पितृ ऋण दोष होता है।

परिणाम : पितृ ऋण होने पर जातक के बनते कार्य बिगड़ने लगते हैं। प्रत्येक कार्य में असफलता एवं निराशा मिलती है। घर में सुख-शांति एवं बरकत समाप्त होने लगती है। व्यक्ति असमय ही वृद्ध दिखाई देने लगता है।

उपचार : यदि ऎसी स्थिति हो तो प्रभावित व्यक्ति अपने संबंधियों से समान मात्रा में उचित धन लेकर किसी धर्मस्थल पर कोई निर्माण कराएं या इस धन का दान कर दें। इससे पितृ ऋण से मुक्ति मिलना संभव है।

माता का ऋण : जन्म पत्रिका में चतुर्थ भाव में चंद्रमा एवं केतु की युति होने पर मातृ ऋण दोष होता है।

परिणाम : माता का ऋण पूर्व जन्म में माता के अपमान करने या उन्हें, कष्ट देने के कारण होता है। प्रभावित व्यक्ति की पढ़ाई-लिखाई में रूकावट आती है। जमीन या मकान गिरवी रखने अथवा बेचने की नौबत हो सकती है। पशु या वाहन संबंधी बाधाएं मातृ ऋण के लक्षण हैं।

उपचार : जातक अपने परिवारजनों से समान मात्रा में चांदी लेकर अथवा स्वयं ही सबके हिस्से की चांदी लेकर अपनी सामथ्र्य के अनुसार नदी, तालाब में प्रवाहित करें। माता का आदर करें।

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