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Thursday, 7 July 2011

मुहूर्त का प्रयोग एवं महत्त्व "

वार और तिथि से बनने वाला योग - सिद्धयोग

अगर योग अनुकूल होता है तो शुभ कहलाता है और अगर कार्य की दृष्टि से प्रतिकूल होता है तो अशुभ कहलाता है। यहां हम दिन और तिथि के मिलने से बनने वाले सिद्ध योग की बात करते हैं जो शुभ कार्य के लिए उत्तम माना जाता है।
सिद्ध योग का निर्माण किस प्रकार होता है सबसे पहले इसे जानते हैं।

1. अगर शुक्रवार के दिन नन्दा तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी या एकादशी पड़े तो बहुत ही शुभ होता है ऐसा होने पर सिद्धयोग का निर्माण होता है।

2.भद्रा तिथि यानी द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी अगर बुधवार के दिन हो तो यह सिद्धयोग का निर्माण करती है।

3.जया तिथि यानी तृतीय, अष्टमी या त्रयोदशी अगर मंगलवार के दिन पड़े तो यह बहुत ही मंगलमय होता है इससे भी सिद्धयोग का निर्माण होता है।

4.ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत चतुर्थ, नवम और चतुर्दशी को रिक्ता तिथि के नाम से जाना जाता है अगर शनिवार के दिन रिक्ता तिथि पड़े तो यह भी सिद्धयोग का निर्माण करती है।

5.पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस को ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत पूर्णा तिथि के नाम से जाना जाता है। पूर्णा तिथि बृहस्पतिवार के दिन उपस्थित होने से भी सिद्ध योग बनता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सिद्धयोग बहुत ही शुभ होता है। इस योग के रहते कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न किया जा सकता है, यह योग सभी प्रकार के मंगलकारी कार्य के लिए शुभफलदायी कहा गया है।

"ॐ श्री गणेशाय नम:" !

मित्र,मुहूर्त के निर्धारण एवं उसके महत्त्व पर जो आपने सूत्र प्रस्तुत किया,वह चिर काल तक इस मंच पर अमर रहेगा !बड़ा ही अद्भुत सूत्र है जिसकी हम सब को आवश्यकता पड़ती रहती है !श्री गणेश जी आपके कार्यों में पड़ने वाले सभी बिघ्न बाधाओं को दूर करें

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