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Saturday, 23 July 2011

रंग चिकित्सा

रंग चिकित्सा 
सूर्य की लाल (Infra red), पराबैंगनी (Ultravoilet) किरणों की कीटाणुनाशक क्षमता से हमारे वैदिक ऋषि भलीभांति परिचित थे। वास्तु नियमों में पूर्व दिशा स्नानागार के लिए प्रशस्त मानी गई है। वैदिक काल में उषा काल में स्नान का प्रावधान था।
इस प्रकार विटामिन डी से भरपूर बाल सूर्य की किरणों का सेवन व्यक्ति करता था और स्वस्थ रहता था। योग में सूर्य नमस्कार और आसन का भी यही उद्देश्य है। त्राटक विधा में बाल सूर्य को एकटक देखे जाने का प्रावधान है। सूर्य की धातु सोना और ताँबा होती है। आयुर्वेदाचार्य ताँबे के पात्र में रात भर रखा हुआ पानी सुबह पीने की सलाह देते हैं अत: सूर्य की सप्त रश्मियां पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाली हैं।
हमारे ऋषि-मुनि भी सूर्य की किरणों में निहित असीम रोगनाशक शक्तियों से अवगत थे। ऋग्वेद और अथर्ववेद में सूर्य भगवान से आरोग्य के आशीर्वाद की कामना के लिए अनेक श्लोक हैं।
"ह्वद्रोगं मम सूर्य हरिमागं च नाशम नम: सूर्यात्र शातात्र सर्व रोग विनाशने आयु: आरोग्यमैश्वर्य देहि देव नमोùस्तुते।" "
हे सूर्य नारायण! मेरे ह्वदय रोग का नाश करो। सर्व रोगों का विनाश कर शांति प्रदान करने वाले, हे, सूर्य देव! आपको शत्-शत् नमस्कार है। हे सूर्य भगवान् आप हमें आयु, आरोग्य और ऎश्वर्य दें।"
रंग चिकित्सा में विभिन्न रंगों वाली बोतलों में तैयार किए गए जल के प्रयोग से इलाज किया जाता है। एक विशिष्ट रंग की बोतल में पानी भरकर उसे धूप में रखा जाता है और फिर इस जल का सेवन किया जाता है। इस विधि में बीमारी और अंग विशेष की पुष्टि के लिए प्रयुक्त रंग की तुलना, ज्योतिष में ग्रहों और उन्हें प्रदत्त रंगों से की जाए तो आश्चर्यजनक तारतम्य देखने को मिलता है।
लाल रंग :
लाल रंग की बोतल में तैयार जल का प्रयोग शरीर पर ऊष्ण प्रभाव के लिए होता है। यह बलदायक होता है तथा विद्युत प्रभाव के कारण शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
ज्योतिष में लाल रंग मंगल का प्रतीक होता है। जन्म पत्रिका में यदि मंगल सुदृढ़ स्थिति में नहीं हो तो इसका तात्पर्य है मंगल ग्रह की रश्मि की कमी। ऎसा व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होता है।
एक लाल रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। लाल रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।
पीला रंग :
पीले रंग की बोतल में तैयार पानी विशेष रूप से यकृत और प्लीहा पर होता है। यह यकृत की शिथिलता को दूर करता है। ज्योतिष में पीला रंग बृहस्पति देव का माना जाता है। मेडिकल एस्ट्रोलॉजी में बृहस्पति का यकृत (रूi1er) पर आधिपत्य माना गया है। यदि जन्म पत्रिका में दुर्बल बृहस्पति छठे भाव में (छठा भाव रोग का भाव है) स्थित हों तो व्यक्ति यकृत की बीमारी से पीç़डत होता है। पीलिया की शिकायत भी जन्मपत्रिका में पीç़डत बृहस्पति के कारण होती है।
एक पीले रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। पीले रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।
हरा रंग :
जल चिकित्सा में हरे रंग को राजा माना गया है। यह रंग गर्मी और सर्दी को संतुलित करता है। इसका प्रयोग रोगाणुनाशक के रूप में और विजातीय पदार्थ को शरीर से बाहर निकालने में होता है, जो एलर्जी का कारण बनते हैं। ज्योतिष में हरा रंग बुध ग्रह का रंग है। बुध शरीर की प्रतिरोधक क्षमता, एलर्जी आदि के कारक हैं।
जन्म पत्रिका में बुध यदि कमजोर हो या पूर्ण अस्त हों तो व्यक्ति सर्दी, जुकाम आदि का शिकार जल्दी-जल्दी होता है तथा धूल, पराग आदि आदि कणों से एलर्जी की शिकायत रहती है। एक हरे रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। हरे रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।
नीला रंग :
रंग चिकित्सा में नीले रंग से आवेशित जल का प्रयोग स्नायु तंत्र में दुर्बलता, डिप्रेशन (Depression), मिर्गी, कुष्ठ रोगादि के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। मेडिकल एस्ट्रोलॉजी में शनि को स्नायु तंत्र, मिर्गी आदि का कारक माना गया है। जन्मपत्रिका में शनि यदि पीç़डत अवस्था में हों तो व्यक्ति को स्नायु तंत्र से संबंधित रोगों का सामना करना प़डता है। यदि शनि बलवान हो एवं बुध से संयोग कर लें तो व्यक्ति (Neuro Surgeon) हो सकता है। एक नीले रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें।
नीले रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।
इस तथ्य से सामान्यजन अनजान हो सकते हैं परन्तु वैदिक काल में ही वैद्यों को ज्योतिष का पर्याप्त ज्ञान होता था। जिस प्रकार आयुर्वेद में ज्योतिष का उल्लेख है, उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में भी कुछ श्लोकों में आयुर्वेद के नुस्खों का सुंदर प्रयोग किया गया है। आ
धुनिक व्यक्ति, वैदिक कालीन इस तथ्य को जानकर भी इससे अनजान बने हुए हैं। रात्रि में देर से सोना और सुबह देर से उठना, उन्होंने अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाया हुआ है। वे यह तो चाहते हैं कि स्वस्थ रहें परन्तु बाल सूर्य की किरणों के अभाव को ब्यूटी पार्लर में जाकर Sauna Bath से पूरा करते हैं। आधुनिकता का एक और उदाहरण ब़डे होटलों में रूपये देकर सूर्य स्नान का आनन्द लिया जाना भी है। हमें समझना होगा, अपने ऋषियों के ज्ञान की पराकाष्ठा को।

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