१५ सूर्य-यन्त्र | १८ चन्द्र-यन्त्र | २१ मंगल-यन्त्र | ||||||||||||
६ | १ | ८ | ७ | २ | ९ | ८ | ३ | १० | ||||||
७ | ५ | ३ | ८ | ६ | ४ | ९ | ७ | ५ | ||||||
२ | ९ | ४ | ३ | १० | ५ | ४ | ११ | ६ | ||||||
२४ बुध-यन्त्र | २७ गुरु-यन्त्र | ३० शुक्र-यन्त्र | ||||||||||||
९ | ४ | ११ | १० | ५ | १२ | ११ | ६ | १३ | ||||||
१० | ८ | ६ | ११ | ९ | ७ | १२ | १० | ८ | ||||||
५ | १२ | ७ | ६ | १२ | ९ | ७ | १४ | ९ | ||||||
३३ शनि-यन्त्र | ३६ राहु-यन्त्र | ३९ केतु-यन्त्र | ||||||||||||
१२ | ७ | १४ | १३ | ८ | १५ | १४ | ९ | १६ | ||||||
१३ | ११ | ९ | १४ | १२ | १० | १५ | १३ | ११ | ||||||
८ | १५ | १० | ९ | १६ | ११ | १० | १७ | १२ |
२॰ यन्त्र भोजपत्र पर अष्ट-गन्ध से अनार की कलम द्वारा लिखे। अष्ट-गन्ध निम्न-लिखित आठ वस्तुओं से तैयार होती है-१ केशर, २ कपूर, ३ अगर, ४ तगर, ५ कस्तूरी, ६ अम्बर, ७ गोरोचन तथा ८ श्वेत या लाल चन्दन। इन आठ वस्तुओं में से यदि कोई वस्तु अप्राप्य हो तो उसके स्थान पर जायफल या जावित्री ले सकते हैं।
३॰ भोज-पत्र पर उक्त प्रकार से लिखे गए यन्त्र को ग्रह के बीज-मन्त्र से १०८ बार हवन कर सिद्ध कर ले।
४॰ ग्रहों के लिए बीज-मन्त्र, जप संख्या एवं जप-काल निम्न प्रकार है-
सूर्य- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सूर्याय नमः। ६०००। प्रातः।
चन्द्र- ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः। ११०००। सायं।
मंगल- ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः। १००००। सन्ध्या।
बुध- ॐ व्रां व्रीं व्रौं सः बुधाय नमः। १९०००। सायं।
गुरु- ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः। १९०००। सन्ध्या।
शुक्र- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः शुक्राय नमः। ६०००। सूर्योदय।
शनि- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। २३०००। सायं।
राहु- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः। १८०००। रात्रि।
केतु- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः केतवे नमः। १७०००। रात्रि।
५॰ उक्त प्रकार सिद्ध किए हुए यन्त्र को ताबीज में रखे। सूर्य और मंगल के लिए ताम्र की, चन्द्र और शुक्र के लिए चाँदी की, बुध और गुरु के लिए स्वर्ण की तथा शनि, राहु व केतु के लिए लौह की ताबीज बनवाएँ।
६॰ ताबीज को दाईं भुजा या गले में धारण करें।
७॰ विपरीत ग्रह-शान्ति के लिए निम्न प्रकार व्रत रखे- सूर्य-व्रतः ३० रविवार। चन्द्र-व्रतः १० या ५४ सोमवार। मंगल-व्रतः २१ या ४१ मंगलवार। बुध-व्रतः १७ या २१ या ४५ बुधवार। गुरु-व्रतः १६ गुरुवार या १ वर्ष या ३ वर्ष तक प्रति गुरुवार। शुक्र-व्रतः २१ या ३१ शुक्रवार। शनि-व्रतः १९ या ५१ शनिवार। राहु-व्रतः १८ शनिवार। केतु-व्रतः ५ शनिवार।
८॰ व्रत पूर्ण होने के बाद दान करे। ग्रहों के लिए दान-वस्तुएँ निम्न प्रकार है-
सूर्यः गेहूँ, जौ, गुड़, ताँबा, रक्त-वस्त्र, कमल, चन्दन, मूंगा।
चन्द्रमाः चावल, श्वेत-वस्त्र, चाँदी, शङ्ख, चन्दन, पुष्प, चीनी, मिश्री, घी, दही, मोती।
मंगलः ताँबा, सीसा, गेहूँ, रक्त-वस्त्र, चन्दन, पुष्प, गुड़, मसूर-दाल, मूंगा।
बुधः काँस, हाथी-दाँत, हरा-वस्त्र, पन्ना, सोना, कपूर, जौ, घी, षट्-रस भोजन।
गुरुः पीला-वस्त्र, सोना, पुस्तक, मधु, शक्कर, छाता।
शुक्रः सोना, चाँदी, चावल, घी, श्वेत-वस्त्र, चन्दन, दही, सुगन्धित वस्तु, मिश्री।
शनिः काला वस्त्र, लोहा, काली उड़द, नीलम, सरसों-तैल, कुलथी, काले-पुष्प।
राहुः अभ्रक, काला तिल, काला वस्त्र, कम्बल, तैल।
केतुः काला तिल, काला वस्त्र, ध्वजा, सप्त-धान्य, कम्बल, तैल।
९॰ विपरीत ग्रह की शान्ति के लिए दाएँ हाथ की अँगुलियों में अँगुठी भी धारण कर सकते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए अँगुठी में ‘रत्न’ निम्न प्रकार होने चाहिए-
सूर्यः माणिक्य, चन्द्रः मोती, मंगलः प्रवाल, बुधः पन्ना, गुरुः पुखराज, शुक्रः हीरा, शनिः नीलम, राहुः फिरोजा या गोमेद, केतुः लहसुनिया।
१०॰ विशेष रुप में- चन्द्र ग्रह- भगवान् शिव की पूजा। बुध एवं गुरु के लिए-अमावस्या-व्रत। शुक्र के लिए- गो-सेवा, गो-पूजा। शनि के लिए- महामृत्युञ्जय-जप, हनुमान-पूजा।
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