यह
ध्यान रहे कि शिव-वास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरूरी है... निष्काम
भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है... ज्योतिíलंग-क्षेत्र एवं
तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, सावन के सोमवार आदि पर्वो में
शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है...
वस्तुत:शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका
कृपापात्र बना देता है और तब उसकी सारी समस्याएं स्वत:समाप्त हो जाती
हैं... दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से सारे
पाप-ताप-शाप धुल जाते हैं.
कृष्णपक्ष
की सप्तमी, चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा में
भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं। अतएव इन तिथियों में किसी
कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर उनकी
साधना भंग होती है जिससे अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।
कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेव
देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान
करने पर संताप या दुख मिलता है।
कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में सदाशिव
क्रीडारत रहते हैं। इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान
करते है।
कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व
चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं। इन तिथियों में सांसारिक कामना से
किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।
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