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Monday 12 September 2011

Shraddh श्राद्ध-तर्पणमें क्या करें, क्या न करें?

Shraddh श्राद्ध-तर्पणमें क्या करें, क्या न करें?


Pitar Paksh : Sept 12 – Sep27

दूसरेकी भूमिपर श्राद्ध नहीं करना चाहिये। जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ और देवमन्दिर – ये दूसरेकी भुमिमें नहीं आते; क्योंकि इनपर किसीका स्वामित्व नहीं होता ।
- कूर्मपुराण
श्राद्धमें पितरोंकी तृप्ति ब्राह्मणोंके द्वारा ही होती है।
-स्कन्दपुराण
श्राद्धकालमें आये हुए अतिथिका अवश्य सत्कार करे। उस समय अतिथिका सत्कार न करनेसे वह श्राद्ध कर्मके सम्पूर्ण फलको नष्ट कर देता है।
- वराहपुराण
जहाँ रजस्वला स्त्री, चाण्डाल और सुअर श्राद्धके अन्नपर दृष्टि डाल देते हैं, वह अन्न प्रेत ही ग्रहण करते हैं।
-स्कन्दपुराण
श्राद्धमें पहले अग्निको ही भाग अर्पित किया जाता है। अग्निमें हवन करनेके बाद जो पितरोंके निमित्त पिण्डदान किया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस दूषित नहीं करते।
- महाभारत, अनु. ९२।११-१२
जो अज्ञानी मनुष्य अपने घर श्राद्ध करके फिर दुसरे घर भोजन करता है, वह पाप का भागी होता है और उसे श्राद्धका फल नहीं मिलता।
- स्कन्दपुराण
एक हाथसे लाया गया जो अन्न (अन्नपात्र) ब्राह्मणोंके आगे परोसा जाता है, उस अन्नको राक्षस छीन लेते हैं।
- मनुस्मृति ३।२२५
वस्त्रके बिना कोई क्रिया, यज्ञ, वेदाध्ययन और तपस्या नहीं होती । अतः श्राद्धकालमें वस्त्रका दान विशेषरुपसे करना चाहिये।
-ब्रह्मपुराण
श्राद्ध और हवनके समय तो एक हाथसे पिण्ड एवं आहुति दे, पर तर्पणमें दोनों हाथोंसे जल देना चाहिये।
- पद्मपुराण,नारदपुराण,मत्स्यपुराण,ब्रह्मपुराण,लघुयमस्मृति
श्राद्धके पिण्डोंको गौ, ब्राह्मण या बकरीको खिला दे अथवा अग्नि या पानीमें छोड दे ।
- मनुस्मृति ३।२६०, महाभारत,अनु. १४५
जो सफेद तिलोंसे पितरोंका तर्पण करता है, उसका किया हुआ तर्पण व्यर्थ होता है ।
- पद्मपुराण
रात्रिमें श्राद्ध नहीं करना चाहिये, उसे राक्षसी कहा गया है। दोनों सन्ध्याओंमें तथा पूर्वाह्णकालमें भी श्राद्ध नहीं करना चाहिये ।
- मनुस्मृति ३।२८०
श्राद्धमें तीन वस्तुएँ अत्यन्त पवित्र हैं – दुहितापुत्र, कुतपकाल (जब सूर्यका ताप घटने लगता है, उस समय का नाम है ‘कुतप’) तथा तिल ।
- महाभारत, आदि. ९३,अनु. १४५, सकन्दपुराण, मनुस्मृति

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