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Wednesday 14 September 2011

श्रीकृष्ण अष्टाक्षर महिमा

श्रीकृष्ण अष्टाक्षर महिमा


किं मंत्रैर्बहुभिर्विन्श्वर्फ़लैरायाससाधयैर्मखै:,
किंचिल्लेपविधानमात्रविफ़लै: संसारदु:खावहै।
एक: सन्तपि सर्वमंत्रफ़लदो लोपादिदोषोंझित:,
श्रीकृष्ण: शरणं ममेति परमो मन्त्रोऽयमष्टाक्षर॥

श्रीमन्यमहाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्यचरण ने अपने आश्रितजनों के कल्याण के लिये अष्टाक्षर महामंत्र की दीक्षा देकर सदैव उसका जप करने के लिये आज्ञा की है। श्रीमत्प्रभुचरण श्रीगुसांई जी से प्रारम्भ कर अब तक हमारे आचार्य वंशज इस महामंत्र इस महामंत्र की दीक्षा शरणागत दैवी जीवों को देने की कृपा कर रहे है। सम्प्रदाय का प्रधान मंत्र यह अष्टाक्षरी महामंत्र है। श्रीमहाप्रभु जी द्वारा प्राप्त इस अष्टाक्षर मंत्र की वैष्णव दीक्षा लेते है,तथा इस मंत्र का नित्यप्रति जाप भी करते है। अष्टाक्षर महामंत्र की महिमा श्रीबल्लभ सम्प्रदाय में सुप्रसिद्ध है। श्रीमत्प्रभुचरण श्री बिट्ठलनाथ गुसांई जी ने अपने अष्टाक्षरार्थ निरूपण नामक ग्रंथ में यह स्पष्ट किया है। श्रीगुसांई जी आज्ञा करते हैं कि :-

श्रीकृष्ण: कृष्ण कृष्णेति कृष्ण नाम सदा जपेत।
आनन्द: परमानन्दौ बैकुंठम तस्य निश्चितम॥

जो प्राणी सदा श्रीकृष्ण भगवान के नाम का स्मरण करता है,उसको इस लोक में आनन्द तथा परमानन्द की प्राप्ति होती है। और अवश्य बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। अष्टाक्षर में आठ अक्षर है,उनका फ़ल श्रीगुसांई जी ने इस प्रकार लिखा है:-

  1. श्री सौभाग्य देता है,धनवान और राजवल्लभ करता है.
  2. कृ यह सब प्रकार के पापों का शोषण करता है,जड से किसी भी कर्म को समाप्त करने की हिम्मत देता है.यह पैदा भी करता है और पैदा करने के बाद समाप्त भी करता है,जैसे कृषक अनाज की फ़सल को पैदा भी करता है और वही काट कर लोक पालना के लिये देता है.
  3. ष्ण आधि भौतिक आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीन प्रकार के दु:खों को हरण करने वाला है.
  4. श जन्म मरण का दुख दूर करता है.
  5. र प्रभु सम्बन्धी ज्ञान देता है
  6. णं प्रभु में द्रढ भक्ति को उत्पन्न करता है.
  7. म भगवत्सेवा के उपदेशक अपने गुरु देव से प्रीत कराता है.
  8. म प्रभु में सायुज्य कराता है,यानी लीन कराता है जिससे पुन: जन्म नही लेना पडे और आवागमन से मुक्ति हो.
श्रीमहाप्रभु जी अपने नवरत्न ग्रंथ में आज्ञा करते है कि :-

तस्मात्सर्वात्मना नित्य: श्रीकृष्ण: शरणं मम।
वददिभरेव सततं स्थेयमित्येव मे मति:॥

सब प्रकार की चिन्ताओं से बचने के लिये सदैव सर्वात्मभाव सहित "श्रीकृष्ण: शरणं मम" कहते रहना अथवा सदैव अष्टाक्षर जप करने वाले भगवदीयों की संगति में रहना यह मेरी सम्मति है। संक्षेप में अष्टाक्षर मंत्र के जप से सब कार्य सिद्ध होते है। आधि भौतिक आध्यात्मिक आधिदैविक इन विविध दुखों में से किसी प्रकार का दु:ख प्राप्त होने पर "श्रीकृष्ण: शरणं मम" इस महामंत्र का जप उच्चार करना चाहिये।

श्रीमन्महाप्रभु जी ने वेद गीता उपनिषद एवं सभी शास्त्रों का सार समन्वय करके तथा सभी प्रकार विचार करके दैवीजीवों के उद्धार के लिये भगवान श्रीकृष्ण चन्द्र के शरणगमन पूर्वक आत्मनिवेदन करके उनकी सेवा स्मरण करते रहना यही निर्णय करके अपने अन्यायीजनों की सबसे प्रथम भगवान की शरणागति की द्रढता के लिये अष्टाक्षर मंत्र दीक्षा देकर उसका जप करने की आज्ञा दी है। इस आज्ञा का पालन करना अत्यावश्यक है। आप अष्टाक्षर मंत्र का जाप करें और अपने कुटुम्ब परिवार के साथ परिचय के वैष्णवौं को प्रेरणा देकर जपानुष्ठान में सम्मिलित होने के लिये प्रबन्ध करें.
॥श्रीकृष्ण: शरणं मम॥

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