तांत्रिक प्रयोगों का विध्वंसक ज्योति प्रयोग
गेंहूं के आटे का चौमुखा दीपक बनावें,और सरसों का तेल डालें,और किसी पत्ते पर रख कर,उसे प्रदीप्त करें,दीपक के तेल में अपना मुंह देखते हुए, नवग्रहों के बीज मंत्रों का उच्चारण करें,इस काम को करते समय जो कर रहा है,उसका मुंह दक्षिण दिशा की तरफ़ होना चाहिये,प्रयोग करते हुए प्रार्थना करनी चाहिये कि जो भी हमारे ऊपर किसी ने किया कराया है,वह यंत्र,मंत्र,तंत्र नष्ट हो जाये,और हम पूर्ण रूप से सुखी हो जायें,और जो भी ग्रह प्रदत्त पीडा हो वह भी दूर हो जाये,और सभी ग्रहों की कृपा हमें प्राप्त हो । इस प्रकार से अपना पूर्ण मनोभाव व्यक्त करें । इसके बाद दीपक को घर के आंगन पर दक्षिण दिशा की ओर रखें,ऊपर से पानी की भरी हुई मटकी इस प्रकार रखें,कि दीपक की चारों बत्तियां एक बार में ही बुझ जायें । इसके बाद हाथ धो लें,और दोनो हाथ प्रार्थना मुद्रा में जोडें,और अपने कल्याण की प्राप्ति के लिये सभी दिशाओं से प्रार्थना करें,इस प्रयोग को रोजाना करते रहें,तेतालीस दिन तो करते ही रहना चाहिये,और शांति मिलते ही बंद कर देना चाहिये,इस कार्य को करने के बाद नवग्रह की कृपा प्राप्त होजायेगी,और जो भी किया कराया होगा वह दूर हो जायेगा,जीवन का मार्ग मिलता चला जायेगा,यदि यह कार्य नदी के किनारे किया जाये तो रोजाना दीपक को पानी में बहा देना चाहिये,अन्यथा,उस दीपक को किसी पवित्र जगह या पीपल के पेड के नीचे रख देना चाहिये.दूसरा प्रयोग
आटे का चौमुखा दीपक बनावें,उसमे सरसों का तेल डालें,और बीच में सवा रुपया डालें,किसी पत्ते पर रख कर नवग्रहों के बीज मंत्रों का उच्चारण करते हुए,अपने मुंह को दीपक की लौ से दूर रखें,अन्यथा उच्चारण करते वक्त दीपक बुझ सकता है,बीज मंत्रों का उच्चारण करने के बाद शनिदेव और राहुदेव से प्रार्थना करें कि जो भी किसी ने तांत्रिक प्रयोग कर दिया है तो वह समाप्त हो जाये,और अगर कोई करे तो हमारे ऊपर वह प्रभावी न हो,यह प्रयोग किसी भी बहते जल के किनारे खडे होकर किया जा सकता है,शनिवार के दिन ही इसे करना चाहिये
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