मन्त्र - ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम !
उर्वारुकमिव बन्ध्नान्म्रत्योर्मुक्षीय मामृतात !!
भावार्थ - तीनो लोकों के स्वामी श्री शिव जो पुष्प रूपी जगत में सुगंध की तरह समाये हुए हैं और पुष्टि प्रदान करते है वही त्रिनेत्रधारी शिव हमारे दुखों, अरिष्टों, विकारों और बन्धनों से ऐसे मुक्त कराएं जैसे खरबूजा प़क कर बेल से अपने आप अलग हो जाता है.
महामृत्युंजय मन्त्र से निम्नलिखित कार्यों की सिद्धि होती है -
१- असाध्य रोगों से मुक्ति
२- ग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम करने हेतु
३- मन की शांति हेतु
४- नाडी दोषों को शांत करने के लिए
५- कालसर्प दोष के निवारण के लिए.
६- पितृ और सर्प दोष की शांति हेतु
७- भूत प्रेत बाधा और टोने टोटके के कुप्रभाव से रक्षा हेतु
८- महामारी से रक्षा और प्राकृतिक प्रकोप से बचने के लिए
९- शनि और राहु दोष के निवारण के लिए.
१०- अपयश और कलंक से बचने के लिए
११- सुखमय जीवन हेतु
१२- आकाल मृत्यु से रक्षा हेतु
जप स्वयं करना चाहिए अथवा किसी योग्य पंडित से करवाना चाहिए. जितनी संख्या में जप किया जाये उसके दशांश हवन, हवन के दशांश तर्पण, तर्पण के दशांश मार्जन करना एवं मार्जन के दशांश ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. हवन सामग्री का निर्धारण अभीष्ट प़र निर्भर करता है.
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