जड़ी बूटियों के संदर्भ में यहॉं यह बताना सारगर्भित होगा कि कुछ ऐसी भी जड़ियॉं होती है जो ग्रहों की पीड़ा शान्ति करने हेतु धारण की जाती हैं क्योंकि रत्नों को विशिष्ट धातुओं में पहिना जाता है एवं रत्न मॅहगें भी होते हैं अतः जो रत्न धारण करने में समर्थ नहीं होते हैं वे जड़ियों को ग्रह शान्ति हेतु पहिनते हैं। नीचे विभिन्न गृहों की पीड़ा शान्ति करने हेतु जड़ों को बतलाया है।
१. सूर्य ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - बेंत की जड़।
२. चन्द्र ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - खिरनी की जड़।
३. मंगल ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - अनंत मूल अथवा नाग जिव्हा
४. बुध ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - बरधारा की जड़ (विधारा)।
५. गुरू ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - भारंगी अथवा केले की जड़।
६. शुक्र ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - सरपोखा या अरंण्ड मूल।
७. शानि ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - विच्छू की मूल (बिछुआ)
५. गुरू ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - भारंगी अथवा केले की जड़।
६. शुक्र ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - सरपोखा या अरंण्ड मूल।
७. शानि ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - विच्छू की मूल (बिछुआ)
८. राहू ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - स्वेत चन्दन की जड़।
९. केतु ग्रह की पीड़ा शान्ति करने हेतु - अश्वगन्ध की जड़।
१०. सर्वग्रह पीड़ा की शान्ति हेतु - काला धतूरा की जड़।
इन जड़ों को रवि पुष्य नक्षत्र में अथवा उसी वार के दिन शुभ मुहूर्त में उखाड़ कर लायें, राहू एवं केतु से संबंधित जड़ियों को शानिवार या बुधवार के दिन उखाड़ कर लाना चाहिये। जड़ियों को एक दिन पूर्व पूजा कर निमंत्रित किया जाता है बाद में दूसरे दिन विधिवत् पूजा कर जड़ी को उखाड़ा जाता है तभी जड़ियॉं फलीभूति होती हैं एवं मनोवांछित लाभ देती हैं।
यदि यंत्र के साथ, अनमोल तांत्रिक जड़ियों का संगम हो जाये तो सोने में सुहागा फल चरितार्थ होता है। एवं फल मिलने में ज्यादा समय नहीं लगता है।
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