पूजा और मंत्र जप के बाद शनि की आरती में एक विशेष उपाय करें। वह यह कि तिल के तेल का दीपक जलाकर शनि की नीचे लिखी आरती करें -
जय-जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ।। जय-जय ।।
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ।। जय-जय ।।
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहार ।। जय-जय ।।
मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ।। जय-जय ।।
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ।। जय-जय ।।
- आरती के बाद इस दीपक को घर के हर कोने में घुमाएं। यह उपाय रोग, दरिद्रता और दु:खों का नाश करने वाला भी माना गया है। आरती के बाद शनिदेव से क्षमा प्रार्थना कर सफलता पाने और भाग्य बाधा को दूर करने की कामना करें।
जय-जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ।। जय-जय ।।
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ।। जय-जय ।।
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहार ।। जय-जय ।।
मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ।। जय-जय ।।
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ।। जय-जय ।।
- आरती के बाद इस दीपक को घर के हर कोने में घुमाएं। यह उपाय रोग, दरिद्रता और दु:खों का नाश करने वाला भी माना गया है। आरती के बाद शनिदेव से क्षमा प्रार्थना कर सफलता पाने और भाग्य बाधा को दूर करने की कामना करें।
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