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Saturday 30 April 2011

शुभ-अशुभ मुहूर्त दिन के अनुसार

शुभ-अशुभ मुहूर्त दिन के अनुसार
हम हर काम मुहूर्त देखकर ही क्यों करते हैं? जाहिर है इसलिए कि हमें उस काम में सफलता मिले और वह काम बिना किस‍ी बाधा के संपन्न हो जाए। लेकिन हर दिन के शुभ-अशुभ समय को कैसे जाना जाए? पेश है, मुहूर्त से संबंधित रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी :

सारा संसार ग्रहों की चालों एवं उनकी किरणों का पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों से आंदोलित रहता है। चाहे वह प्राणी जगत हो या फिर वनस्पति जगत। इसलिए ज्योतिष में उनकी अनुकूलता को मुहूर्त का नाम दिया है। प्रतिदिन अशुभ काल में शुभ कार्य न करें बल्कि शुभ काल में ही अपने कार्यों को करना चाहिए। जैसे- राहू काल में कोई शुभ कार्य व यात्रा तथा कोई व्यापार संबंधी तथा धन का लेन-देन न करें। राहू काल अनिष्टकारी बताया गया है। गुलीक काल में शुभ कार्य करें। राहू काल तथा गुलीक काल का विवरण निम्न प्रकार है-

राहू काल (अशुभ समय)

रविवार - सायं 4.30 से 6 बजे तक

सोमवार - प्रातः 7.30 से 9 बजे तक

मंगलवार- अपराह्न- 3 से 4.30 बजे तक

बुधवार- दोपहर 12 से 1.30 बजे तक

गुरुवार- दोपहर 1.30 से 3 बजे तक

शनिवार- प्रातः 9 से 10.30 बजे तक

गुलीक काल (शुभ समय)

रविवार- अपराह्न- 3 से 4.30 बजे तक

सोमवार- दोपहर 1.30 से 3 बजे तक

मंगलवार - दोपहर 12 से 1.30 बजे तक

बुधवार - प्रातः 10.30 से 12 बजे तक

गुरुवार - प्रातः 9 से 10.30 बजे तक

शुक्रवार - प्रातः 7.30 से 9 बजे तक

शनिवार - प्रातः 6 से 7.30 बजे तक

गोधूलि वेला- विवाह मुहूर्तों में क्रूर ग्रह, युति, वेध, मृत्युवाण आदि दोषों की शुद्धि होने पर भी यदि विवाह का शुद्ध लग्न न निकलता हो तो गोधूलि लग्न में विवाह संस्कार संपन्न करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है।

जब सूर्यास्त न हुआ हो (अर्थात्‌ सूर्यास्त होने वाला हो) गाय आदि पशु अपने घरों को लौट रहे हों और उनके खुरों से उड़ी धूल उड़कर आकाश में छा रही हो तो उस समय को मुहूर्तकारों ने गोधूलि काल कहा है। इसे विवाहादि मांगलिक कार्यों में प्रशस्त माना गया है। इस लग्न में लग्न संबंधी दोषों को नष्ट करने की शक्ति है।

आचार्य नारद के अनुसार सूर्योदय से सप्तम लग्न गोधूलि लग्न कहलाती है। पीयूषधारा के अनुसार सूर्य के आधे अस्त होने से 48 मिनट का समय गोधूलि कहलाता है।

राशि के अनुसार मुहूर्त

NDजन्म के समय जिस नक्षत्र का जो चरण होता है उसके अनुसार रखे जाने वाले नाम से जो राशि बनती है उसे जन्म राशि कहते हैं। स्वेच्छा से लोकव्यवहार के लिए जो नाम रखा जाता है उस अक्षर के नक्षत्र और चरण के अनुसार जो राशि बनती है उसे नाम राशि कहा जाता है।

जन्म राशि- विवाह, संपूर्ण मांगलिक कार्य, यात्रा और ग्रहों की स्थिति आदि में जन्म राशि की प्रधानता होती है। इन कार्यों में नाम राशि का विचार नहीं करना चाहिए।

नाम राशि- देश, ग्राम गृह संबंधी कार्यों में, युद्ध में नौकरी और व्यापार में नाम राशि की प्रधानता होती है। इन कार्यों में जन्म राशि का विचार न करें। जन्म राशि के होने पर विवाहादि कार्य लग्न और ग्रहों के बल का विचार करके नाम राशि से ही कर लेना चाहिए।

घर में हो कोई भी परेशानी तो अपनाएं वास्तुटोटके
वर्तमान समय में सुविधा जुटाना आसान है। परंतु शांति इतनी सहजता से नहीं प्राप्त होती। हमारे घर में सभी सुख-सुविधा का सामान है, परंतु शांति पाने के लिए हम तरस जाते हैं। वास्तु शास्त्र द्वारा घर में कुछ मामूली बदलाव कर समस्याओं को दूर कर आप घर एवं बाहर शांति का अनुभव कर सकते हैं।


- घर के मुख्यद्वार के दोनों ओर पत्थर या धातु का एक-एक हाथी रखने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।
- भवन में आपके नाम की प्लेट को बड़ी एवं चमकती हुई रखने से यश की वृद्धि होती है।
- स्वर्गीय परिजनों के चित्र दक्षिणी दीवार पर लगाने से उनका आशीर्वाद मिलता रहता है।
- विवाह योग्य कन्या को उत्तर-पश्चिम के कमरे में सुलाने से विवाह शीघ्र होता है।
-किसी भी दुकान या कार्यालय के सामने वाले द्वार पर एक काले कपडे में फिटकरी बांधकर लटकाने से बरकत होती है। धंधा अच्छा चलता है।
- दुकान के मुख्य द्वार के बीचों बीच नीबूं व हरी मिर्च लटकाने से नजर नहीं लगती है।
- घर में स्वस्तिक का निशान बनाने से निगेटिव ऊर्जा का क्षय होता है
- किसी भी भवन में प्रात: एवं सायंकाल को शंख बजाने से ऋणायनों में कमी होती है।
- घर के उत्तर पूर्व में गंगा जल रखने से घर में सुख सम्पन्नता आती है।
- पीपल की पूजा करने से श्री तथा यश की वृद्धि होती है। इसका स्पर्श मात्रा से शरीर में रोग प्रतिरोधक तत्वों की वृद्धि होती है।
- घर में नित्य गोमूत्र का छिडकाव करने से सभी प्रकार के वास्तु दोषों से छुटकारा मिल जाता है।
- मुख्य द्वार में आम, पीपल, अशोक के पत्तों का बंदनवार लगाने से वंशवृद्धि होती है।

सूर्य की प्रतिमा के चरणों के दर्शन न करें, क्योंकि
देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से ही हमारे कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और अक्ष्य पुण्य प्राप्त होता है। भगवान की प्रतीक प्रतिमाओं के दर्शन से हमारे सभी दुख-दर्द और क्लेश स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। सभी देवी-देवताओं की पूजा के संबंध में अलग-अलग नियम बनाए गए हैं।
सभी पंचदेवों में प्रमुख देव हैं सूर्य। सूर्य की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली होती है। सूर्य देव की पूजा के संबंध में एक महत्वपूर्ण नियम है बताया गया है कि भगवान सूर्य के पैरों के दर्शन नहीं करना चाहिए। इस संबंध में शास्त्रों में एक कथा बताई गई है। कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। सूर्य का रूप परम तेजस्वी था, जिसे देख पाना सामान्य आंखों के लिए संभव नहीं था। इसी वजह से संज्ञा उनके तेज का सामना नहीं कर पाती थी। कुछ समय बाद देवी संज्ञा के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ। यह तीन संतान मनु, यम और यमुना के नाम से प्रसिद्ध हैं। देवी संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में लगा दिया और खुद वहां से चली गई। कुछ समय बाद जब सूर्य को आभास हुआ कि उनके साथ संज्ञा की छाया रह रही है तब उन्होंने संज्ञा को तुरंत ही बुलवा लिया। इस तरह छोड़कर जाने का कारण पूछने पर संज्ञा ने सूर्य के तेज से हो रही परेशानी बता दी। देवी संज्ञा की बात को समझते हुए उन्होंने देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा से निवेदन किया कि वे उनके तेज को किसी भी प्रकार से सामान्य कर दे। विश्वकर्मा ने अपनी शिल्प विद्या से एक चाक बनाया और सूर्य को उस पर चढ़ा दिया। उस चाक के प्रभाव से सूर्य का तेज सामान्य हो गया। विश्वकर्मा ने सूर्य के संपूर्ण शरीर का तेज तो कम दिया परंतु उनके पैरों का तेज कम नहीं कर सके और पैरों का तेज अब भी असहनीय बना हुआ है। इसी वजह सूर्य के चरणों का दर्शन वर्जित कर दिया गया। ऐसा माना जाता है कि सूर्य के चरणों के दर्शन से दरिद्रता प्राप्त होती है और पाप की वृद्धि होती है पुण्य कम होते हैं।

बहु उपयोगी सलाह घरेलू उपायों की
भूख न लगे या कुछ खाने की इच्छा न होने पर अजवायन में स्वादानुसार काला नमक मिलाकर, पीस कर, चुटकी भर काली मिर्च, पिसा पोदीना, सब गर्म पानी से फंकी लेने पर अरुचि की शिकायत दूर हो जाती है।
* पेट में रूकी हुई गैस दूर करने के लिए दो लहसुन मुनक्का में लपेट कर भोजन के बाद चबाकर निगलने पर गैस बाहर निकल जाएगी।
* दानेदार मेथी की फंकी गर्म पानी में लेने से पेट दर्द दूर हो जाता है।
* सुबह-शाम दो भाग दही और एक भाग शहद मिलाकर चाटने से कीड़े मर जाते हैं।
* सरसों के तेल की मालिश पेट पर करने से कब्ज में आराम होता है।
* दो लौंग गर्म पानी से लेने पर जी मिचलाना, हिचकी, मुख का बिगड़ा स्वाद, चक्कर, उबकाई आना सब ठीक हो जाता है।
* अदरक के लच्छे पर नमक छिड़क कर भोजन के साथ सेवन करने पर दस्त में आराम मिलता है।
* पेचिश में भिंडी की सब्जी खाना लाभदायक है।
* पीलिया होने पर 1 कप पानी में 1 चम्मच ग्लूकोच डाल कर दिन में 5-5 बार लें।
* ताजे अदरक के छोटे-छोटे टुकडे करके चूसने से पुरानी नई सब तरह की हिचकी बंद हो जाती है।
* अदरक को घोलकर एक टुकड़ा मुख में रखकर चूसने से कफ आसानी से निकल जाती है।
* हफ्ते में दो बार लहसुन की 4 फली लेने पर सर्दी नहीं लगती।
* अजवायन को गर्म पानी के साथ लेने पर खांसी में आराम मिलता है।
* भोजन में हींग का प्रयोग अवश्य ही करें। दुर्बल हृदय को शक्ति मिलती है। रक्त संचार सरलता से होता है।
* दिल के दौरे पड़ने की संभावना होने पर 5 कलियां लहसुन तुरंत चबाकर निगल लें। दौरा पड़ने के चांस निर्मूल सिध्द होते हैं फिर लहसुन को दूध में उबाल कर लेते रहना चाहिए
फोड़े-फुंसियां ( furuncle )
दही
अगर फोड़े में सूजन, दर्द और जलन आदि हो तो उस पर पानी निकाले हुए दही को लगाकर पट्टी बांध देते हैं। एक दिन में 3 बार इस पट्टी को बदलने से लाभ होता है।

गाजर का रस
300 मिलीलीटर गाजर के रस और 112 मिलीलीटर पालक के रस को एकसाथ मिलाकर पीने से फोड़े-फुंसी, कैंसर, सांस की नली की सूजन, मोतियाबिन्द, जुकाम, कब्ज, आंखों के रोग, गलगण्ड, बवासीर, हर्निया, फ्लू, गुर्दे के रोग, पीलिया, हृदयशूल, और वात रोग ठीक हो जाते हैं।
280 मिलीलीटर गाजर का रस और लगभग 170 मिलीलीटर पालक का रस एकसाथ मिलाकर पीने से मुंहासे, कण्ठलूशाक, सफेद पदार्थ निकलना, दमा, मधुमेह, सिरदर्द, अनिद्रा, लीवर के रोग, आधे सिर का दर्द, बुखार आदि ठीक हो जाते हैं।
गाजर की गर्म पुल्टिश (पोटली) बांधने से फोड़े-फुन्सियों में लाभ होता है। यह फोड़े-फुन्सियों के जमे हुए खून को भी पिघला देती है।
मसूर की दाल
मसूर के आटे की पुल्टिश (पोटली) लगाने से फोड़े शीघ्र ही फूट जाते है और उसकी मवाद सूख जाती है। मसूर की दाल को पीसकर उसकी पुल्टिस (पोटली) को फोड़ों पर बांधने से वो ठीक हो जाते हैं।
मुलहठी
फोड़े पर मुलहठी का लेप लगाने से फोड़ा जल्दी पककर फूट जाता है।
अड़ूसा (वासा)
फोड़े-फुंसियों की प्रारंभिक अवस्था में ही अड़ूसा के पत्तों को पीसकर बनाया गया गाढ़ा लेप लगाकर बांध देने से वह बैठ जाते हैं। यदि फोड़े पक गए हो तो वह शीघ्र ही फूट जाते हैं। फूटने के बाद इस लेप में थोड़ी सी पिसी हल्दी मिलाकर लगाने से घाव शीघ्र भर जाते हैं।
गेंदा
गेंदे के पत्तों को पीसकर फोड़े-फुंसियों पर 2-3 बार लगाने से लाभ मिलता है।
कनेर
कनेर के लाल फूलों को पीसकर लेप तैयार करें। इस लेप को फोड़े-फुन्सियों पर दिन में 2 से 3 बार नियमित रूप से लगाने से लाभ मिलता है।
कनेर की जड़ की छाल को पीसकर पके हुए फोड़े पर लेप करने से फोड़ा 3 से 4 घंटे में ही फूट जाता है।
इमली
फोड़े होने पर 30 ग्राम इमली को 1 गिलास पानी में मसलकर मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
इमली के 10 ग्राम पत्तों को गर्म करके उसकी पुल्टिश (पोटली) बनाकर बांधने से फोड़ा पककर जल्दी फूट जाता है।
इमली के बीजों की पुल्टिश (पोटली) बांधने से फुंसियां मिट जाती हैं।
अजवाइन
नींबू के रस में अजवाइन को पीसकर फोड़ों पर लेप करना चाहिए।
सूजन आने पर अजवाइन को पीसकर उसमें थोड़ा-सा नींबू निचोड़कर फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
प्याज
प्याज को कूटकर पीस लें। फिर उसमें हल्दी, गेंहू का आटा, पानी और शुद्ध घी मिलाकर थोड़ी देर आग पर रखकर पकाकर पोटली बनाकर फोड़े पर बांधने से फोड़ा फूट जाता है और आराम मिलता है।
फोड़े, गांठ, मुंहासे, नारू, कंठमाला (गले की गिल्टी) आदि रोगों पर प्याज को घी में तलकर बांधने से या प्याज के रस को लगाने से लाभ पहुंचता है।
प्याज को पीसकर उसकी पोटली बनाकर फोड़े पर बांधने से फोड़ा फूट जाता है और उसकी मवाद निकलने के बाद फोड़ा सूख जाता है।
अलसी
एक चौथाई अलसी के बीजों को बराबर मात्रा में सरसों के साथ पीसकर गर्म करके लेप बना लें। फोड़े पर 2-3 बार यह लेप करने से फोड़ा बैठ जाता है या पककर फूट जाता है।
अलसी को पानी में पीसकर उसमें थोड़ा जौ का सत्तू मिलाकर खट्टे दही के साथ फोड़े पर लेप करने से फोड़ा पक जाता है।
वात प्रधान फोड़े में अगर जलन और वेदना हो तो तिल और अलसी को भूनकर गाय के दूध में उबालकर, ठंडा होने पर उसी दूध में उन्हें पीसकर फोड़े पर लेप करने से लाभ होता है।
अगर फोड़े को पकाकर उसका मवाद निकालना हो तो अलसी की पुल्टिस (पोटली) में 2 चुटकी हल्दी मिलाकर फोड़े पर बांध दें।
अमरूद
4 सप्ताह तक रोजाना दोपहर में 250 ग्राम अमरूद खाने से पेट साफ होता है, बढ़ी हुई गर्मी दूर होती है, खून साफ होता है और फोड़े-फुन्सी तथा खाज-खुजली ठीक हो जाते हैं।
अमरूद की थोड़ी सी पत्तियों को लेकर पानी में उबालकर पीस लें। इस लेप को फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
अनानास
अनानास का गूदा फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
लालमिर्च
बरसात के मौसम में होने वाले फोड़े-फुंसियों और खुजली आदि में लालमिर्च के तेल को सेवन करने से फोड़े-फुंसी जल्दी ठीक जाते हैं।
गर्मी के मौसम में शरीर पर दाने या फुंसियां हो जाती है उन्हें खत्म करने के लिए मिर्ची के तेल को लगाने से राहत मिलती है और फोडे़-फुंसियां भी ठीक हो जाती हैं।
नीम
नीम की 6 से 10 पकी निंबौली को 2 से 3 बार पानी के साथ सेवन करने से फुन्सियां कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाती है।
नीम, तुलसी और पोदीने की पत्तियों को पीसकर उसमें मुलतानी मिट्टी और चन्दन का चूर्ण मिलाकर बनें मिश्रण को चेहरे पर लगाने से चेहरे के मुंहासे समाप्त होकर त्वचा निखर जाती है।
नीम की पत्तियों का रस पानी में मिलाकर नहाने से खाज-खुजली नष्ट हो जाती है।
नीम की पत्तियों को पीसकर फोडे़-फुन्सियों पर लगाने से लाभ होता हैं।
नीम के पत्ते, छाल और निंबौली को बराबर मात्रा में पीसकर बने लेप को दिन में 3 बार लगाने से फोड़े-फुन्सी और घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं।
नीम की पत्तियों को गर्म करके या नीम की छाल को घिसकर फोड़े-फुन्सी और बिच्छू के काटे भाग पर लगाकर सेंकने से लाभ पहुंचता है।
नीम के पत्ते को पीसकर शहद के साथ मिलाकर लेप करने से फूटे हुए फोड़े जल्दी ठीक हो जाते हैं।
नीम के पत्ते को पीसकर दही और बेसन में मिलाकर चेहरे व दूसरे अंगों में लगाने से और कुछ देर बाद पानी से साफ कर देने से चेहरे की फुंसियां और मुंहासे समाप्त होकर त्वचा निखर उठती हैं।
175 ग्राम नीम के पत्तों को बिना पानी डाले पीसकर लुगदी बना लें। तांबे के बर्तन में इसका आघा हिस्सा सरसों का तेल डालकर गर्म करें, तेल में धुंआ आने पर इसमें बनी हुई लुगदी डाल दें। लुगदी तेल में जलकर काली पड़ने पर उतारकर ठंडा कर दें। फिर इसमें कपूर और जरा-सा मोम डालकर पीस लें। इस बने लेप को लगाने से फोड़े-फुंसियों में लाभ होता है।
मार्च-अप्रैल के महीने में जब नीम की नयी-नयी कोंपलें (मुलायम पत्तियां) खिलती है तब 21 दिन तक युवा लोगों को नीम की ताजी 15 कोंपले (मुलायम पत्तियां) और बच्चों को 7 पत्तियां रोजाना गोली बनाकर दातुन-कुल्ला करने के बाद पानी के साथ खाने से या पीसकर लगाने से पूरे साल तक फोड़े-फुंसिया नहीं निकलती है।
एरण्ड
एरण्ड की जड़ को पीसकर घी या तेल में मिलाकर कुछ गर्म करके गाढ़ा लेप करने से विद्रधि (फोड़ा) मिट जाती है।
तिल
8 ग्राम काले तिल, 2 ग्राम सोंठ और 4 ग्राम गुड़ के मिश्रण को गर्म दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ होता है।
100 ग्राम तिल के तेल में भिलावे को जलाकर उसमें 30 ग्राम सेलखड़ी को पीसकर मिला दें। यह हर प्रकार के जख्म को अच्छा कर देती है। मगर जब जख्म पर लगाएं तो मुर्गी के पंख से ही लगाएं।
बेर
बेर के पत्तों को पीसकर गर्म करके उसकी पट्टी बांधने से और बार-बार उसको बदलते रहने से फोड़े जल्दी पककर फूट जाते हैं।
नारियल
100 ग्राम नारियल का तेल, 10 ग्राम मुहार की मिक्खयों का मोम और 2 चम्मच तुलसी के पत्तों के रस को मिलाकर थोड़ी देर के लिये आग पर पकाने के लिए रख दें। फिर इसे आग पर से उतारकर ठंडा करके इस लेप को कुछ दिनों तक फोड़े-फुंसियां पर लगाने से वो ठीक हो जाती है।
नींबू
नींबू के रस में चन्दन का चूर्ण डालकर फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
जामुन
जामुन की गुठलियों को पीसकर फुंसियों पर लगाने से फुंसियां जल्दी ठीक हो जाती है।
मेहन्दी
शरीर में जहां पर फोड़े-फुंसिया हो उस जगह को मेहन्दी के पानी से धोने से लाभ होता है।
मोम
मौलसिरी की छाल को लेकर सुखा लें। फिर उसे पीसकर मोम या वैसलीन में मिला लें। इसे दिन में 3 से 4 बार लगाने से फोड़े और फुंसिया ठीक हो जाती है।
कपूर
20 ग्राम राल, 20 ग्राम कपूर, 10 ग्राम नीला थोथा, 20 ग्राम मोम और 20 ग्राम सिन्दूर को पीसकर घी में मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को फोड़े-फुंसियों पर लगाने से आराम मिलता है।
कटहल
कटहल की लकड़ी को घिसकर उसके अन्दर कबूतर की बीट मिला लें। उसके बाद उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चूना मिलाकर इसका लेप करने से लाभ होता है।
तुलसी
तुलसी के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से फोड़े को धो लेते हैं। तुलसी के ताजा पत्तों को पीसकर फोड़ों पर लगाना चाहिए। इससे फोड़ों में लाभ मिलता है।
तुलसी और पीपल के नये कोमल पत्तों को बराबर मात्रा में पीसकर फोड़ों पर प्रतिदिन 3 बार लगाना चाहिए। इससे फोड़े जल्दी नष्ट हो जाते हैं।
गर्मी या वर्षा ऋतु में होने वाली फुंसियों पर तुलसी की लकड़ी को घिसकर लगाने से लाभ मिलता है।
हल्दी
भृंगराज (भंगारा), हल्दी, सेंधानमक और धतूरे के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और गर्म करके फोड़े-फुंसियों पर लेप करें या आंबाहल्दी, प्याज और घी को गर्म करके बांध लें।
पानी
रोजाना रात को फुंसियों पर गर्म पानी से सिंकाई करने से लाभ होता है।
करेला
फुंसियों पर थोड़े दिन तक करेले का रस लगाने से फुंसिया सूख जाती है।
बरगद
बरगद के दूध को फोड़े पर लगाने से फोड़ा जल्दी पककर फूट जाता है।
बरगद के नये पत्तों को आग के ऊपर से ही हल्का सा गर्म करके उसके ऊपर थोड़ा सा तेल लगाकर बांधने से लाभ होता है।
घी
अगर फोड़े को पकाना हो तो पान के पत्ते पर थोड़ा सा घी गर्म करके फोड़े पर लगाकर बांध दें।
बैंगन
फोड़े, फुन्सी होने पर बैंगन की पट्टी बांधने से फोड़े जल्दी पक जाते हैं।
बेल
खून के विकार से उत्पन्न फोड़े-फुंसियों पर बेल के पेड़ की जड़ या लकड़ी को पानी में पीसकर लगाने से लाभ पहुंचता है।
बथुआ
बथुए को कूटकर सोंठ और नमक के साथ मिलाकर गीले कपड़े में बांधकर कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर आग में सेंकें। सेकने के बाद बांध लें, इस प्रयोग से फोड़ा बैठ जायेगा अथवा पककर जल्दी फूट जायेगा।
परवल
कड़वे परवल और कड़वे नीम के काढ़े से फोड़ों को धोने से फोड़े साफ हो जाते हैं।
पीपल
पीपल के कोमल पत्ते को घी लगाकर गर्म करके फुंसी-फोड़े पर बांधने से लाभ होता है।
पीपल की छाल को पानी में घिसकर फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
फोड़ों को पकाने के लिए पीपल की छाल की पुल्टिश (पोटली) बनाकर फोड़े पर बांधने से लाभ मिलता है।
पीपल के पत्ते को गर्म करकें पत्ते की सीधी तरफ थोड़ा सा असली शहद या सरसों का तेल लगाकर फोड़े पर बांधने से लाभ होता है।
पीपल की छाल का चूर्ण जख्म पर छिड़कने से भी लाभ मिलता है।
विशेष
नीम की नई-नई कोंपलों को सुबह खाली पेट खाना चाहिए और उसके बाद 2 घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए। इससे खून की खराबी, खुजली, त्वचा के रोग, वात (गैस), पित्त (शरीर की गर्मी) और कफ (बलगम) के रोग जड़ से खत्म हो जाते हैं। इसको लगातार खाने से मधुमेह (डायबटिज) की बीमारी भी दूर हो जाती है। इससे मलेरिया और भयंकर बुखार के पैदा होने की संभावना भी नहीं रहती पर ध्यान रखना चाहिए कि बड़ों को 15 कोंपलें (मुलायम पत्तों) और बच्चों को 7 कोपलों से ज्यादा नहीं देनी चाहिए और ज्यादा समय तक भी नहीं खाना चाहिए। नहीं तो मर्दाना शक्ति भी कमजोर हो जाती है।
शीशम
शीशम के पत्तों का 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा सुबह-शाम पीने से फोड़े-फुन्सी नष्ट हो जाते हैं। कोढ़ होने पर इसके पत्तों का काढ़ा रोगी को पिलाना लाभकारी रहता है।
अखरोट
यदि फुंसियां अधिक निकलती हो तो 1 वर्ष तक रोजाना सुबह के समय 5 अखरोट सेवन करते रहने से लाभ होता है।
मेथी
दाना मेथी को थोड़े-से पानी में भिगोकर, पीसकर उसमे थोड़ा-सा घी या तेल डालकर गर्म करके पुल्टिश बनाकर बांधने से फोड़े-फुंसी, सूजन और दर्द में लाभ मिलता है।
मेथी के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से कोष्ठबद्धता (कब्ज) नष्ट होती है, खून शुद्ध होता है और फोडे़-फुंसियों की विकृति भी नष्ट हो जाती है।
काजू
काजू की कच्ची गिरी और तीवर के फल को ठंडे पानी में घिसकर लेप करने से फोड़ा जल्दी मिट जाता है।
दूब
पके फोड़े पर प्रतिदिन दूब को पीसकर लेप करने से फोड़ा जल्दी फूट जाता है।
चावल
सरसों के तेल में पिसे हुए चावलों की पुल्टिश बनाकर बांधने से फोड़ा फूट जाता है एवं पस निकल जाती है।
मिट्टी
सूजन, फोड़ा, उंगुली की विषहरी हो (उंगुली में जहर चढ़ने पर), तो गीली मिट्टी का लेप हर आधे घण्टे तक करते रहने से लाभ होता है। फोड़ा बड़ा तथा कठोर हो, फूट न रहा हो तो उस पर गीली मिट्टी का लेप करें। इससे फोड़ा फूटकर मवाद बाहर आ जाती है। बाद में गीली मिट्टी की पट्टी बांधते रहें। मिट्टी की पट्टी या लेप फोड़ों को बाहर खींच निकालता है।
शरीर पर अगर फोड़े-फुंसी निकल रहे हो और फूट नहीं रहे हो तो उन पर काली मिट्टी का लेप करना चाहिए।
चन्दन
चन्दन को पानी में घिसकर लगाने से फोडे़-फुन्सी और घाव नष्ट हो जाते हैं।
राई
राई का लेप सदा ठंडे पानी में बनायें। राई का लेप सीधे त्वचा पर न लगाये इसका लेप लगाने से पहले त्वचा पर घी या तेल लगा लें क्योंकि इसका लेप सीधे लगाने से फोड़े-फुंसी आदि होने का डर रहता है। राई को ताजे पानी के साथ बारीक पीसकर लेप बनाकर साफ मलमल के कपड़े पर पतला-पतला लेप करके इस कपड़े को रोगी के फोड़े-फुंसी से पीड़ित अंग पर रख दें
धन भाव बताता है आर्थिक योग
द्वितीय भाव धन व आर्थिक स्थिति को बताता है। इससे परिवार सुख व पैतृक संपत्ति की भी सूचना मिलती है। द्वितीय भाव में जो राशि होती है, उसका स्वामी द्वितीयेश कहलाता है। इसे धनेश भी कहते हैं।

1. धनेश लग्न में होने से परिवार से प्रेम रहता है, आर्थिक व्यवहार में पटुता हासिल होती है।

2. धनेश धन स्थान में हो तो परिवार का उत्कर्ष होता है व आर्थिक स्थिति हमेशा अच्‍छी रहती है।

3. धनेश तृतीय में हो तो भाई-बहनों की उन्नति व लेखन से आर्थिक लाभ का सूचक है।

4. धनेश चतुर्थ में हो तो माता-पिता से सतत सहयोग व लाभ मिलता है, चैन से जीवन बीतता है।

5. धनेश पंचम में हो तो कला से धनार्जन, संतान के लिए सतत खर्च करना पड़ता है।

6. धनेश षष्ठ में हो तो कमाया गया धन बीमारियों के लिए खर्च होता है, अतिविश्वास से धोखा होता है।

7. धनेश सप्तम में हो तो पत्नी/पति व घर के लिए ही सारा धन खर्च होता रहता है।

8. धनेश अष्टम में हो तो गलत तरीके से पैसा कमाने की वृत्ति रहती है व उससे आरोप-प्रत्यारोप लगते हैं।

9. धनेश नवम में हो तो आर्थिक योग उत्तम, व्यवसाय के लिए दूर की यात्रा के योग आते हैं।

10. धनेश दशम में होने पर नौकरी से लाभ, पैतृक संपत्ति भरपूर मिलती है।

11. धनेश ग्यारहवें स्थान में होने पर मित्र-संबंधियों से सतत सहयोग व लाभ मिलता है।

12. धनेश व्यय में हो तो बीमारी, कोर्ट-कचहरी में धन व्यय होता है। दान-धर्म में भी खर्च होता है
वास्तु दोष निवारण
कभी-कभी दोषों का निवारण वास्तुशास्त्रीय ढंग से करना कठिन हो जाता है। ऐसे में दिनचर्या के कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हुए निम्नोक्त सरल उपाय कर इनका निवारण किया जा सकता है।


* पूजा घर पूर्व-उत्तर (ईशान कोण) में होना चाहिए तथा पूजा यथासंभव प्रातः 06 से 08 बजे के बीच भूमि पर ऊनी आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर ही करनी चाहिए।

* पूजा घर के पास उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में सदैव जल का एक कलश भरकर रखना चाहिए। इससे घर में सपन्नता आती है। मकान के उत्तर पूर्व कोने को हमेशा खाली रखना चाहिए।

* घर में कहीं भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, अन्यथा घर में बरकत और धनागम के स्रोतों में वृद्धि नहीं होगी।

* पूजाघर में तीन गणेशों की पूजा नहीं होनी चाहिए, अन्यथा घर में अशांति उत्पन्न हो सकती है। तीन माताओं तथा दो शंखों का एक साथ पूजन भी वर्जित है। धूप, आरती, दीप, पूजा अग्नि आदि को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं। पूजा कक्ष में, धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें।

* घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले नहीं होने चाहिए। ऐसे दरवाजे अज्ञात भय पैदा करते हैं। दरवाजे खोलते तथा बंद करते समय सावधानी बरतें ताकि कर्कश आवाज नहीं हो। इससे घर में कलह होता है। इससे बचने के लिए दरवाजों पर स्टॉपर लगाएं तथा कब्जों में समय समय पर तेल डालें।

* खिड़कियां खोलकर रखें, ताकि घर में रोशनी आती रहे।

* घर के मुख्य द्वार पर गणपति को चढ़ाए गए सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं।

* महत्वपूर्ण कागजात हमेशा आलमारी में रखें। मुकदमे आदि से संबंधित कागजों को गल्ले, तिजोरी आदि में नहीं रखें, सारा धन मुदमेबाजी में खर्च हो जाएगा।

* घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए नहीं हों, अन्यथा घर में अशांति होगी।

* सामान्य स्थिति में संध्या के समय नहीं सोना चाहिए। रात को सोने से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान जरूर करना चाहिए।

* घर में पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व तथा पढ़ाने वाले का उत्तर की ओर होना चाहिए।

* घर के मध्य भाग में जूठे बर्तन साफ करने का स्थान नहीं बनाना चाहिए।

* उत्तर-पूर्वी कोने को वायु प्रवेश हेतु खुला रखें, इससे मन और शरीर में ऊर्जा का संचार होगा।

* अचल संपत्ति की सुरक्षा तथा परिवार की समृद्धि के लिए शौचालय, स्नानागार आदि दक्षिण-पश्चिम के कोने में बनाएं।

* भोजन बनाते समय पहली रोटी अग्निदेव अर्पित करें या गाय खिलाएं, धनागम के स्रोत बढ़ेंगे।

* पूजा-स्थान (ईशान कोण) में रोज सुबह श्री सूक्त, पुरुष सूक्त एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें, घर में शांति बनी रहेगी।

* भवन के चारों ओर जल या गंगा जल छिड़कें।

* घर के अहाते में कंटीले या जहरीले पेड़ जैसे बबूल, खेजड़ी आदि नहीं होने चाहिए, अन्यथा असुरक्षा का भय बना रहेगा।

* कहीं जाने हेतु घर से रात्रि या दिन के ठीक १२ बजे न निकलें।

* किसी महत्वपूर्ण काम हेतु दही खाकर या मछली का दर्शन कर घर से निकलें।

* घर में या घर के बाहर नाली में पानी जमा नहीं रहने दें।

* घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने दें, अन्यथा धन की हानि होगी।

* शयनकक्ष में कभी जूठे बर्तन नहीं रखें, अन्यथा परिवार में क्लेश और धन की हानि हो सकती है।

* भोजन यथासंभव आग्नेय कोण में पूर्व की ओर मुंह करके बनाना तथा पूर्व की ओर ही मुंह करके करना चाहिए
वार और तिथि से बनाने वाले सिद्ध योग
जब आप कोई मंगल कार्य करने की सोच रहे होते हैं तब आप ज्योतिषी महोदय से मिलकर शुभ दिन निकालने की बात करते हैं। शुभ दिन के आंकलन हेतु ज्योतिषी महोदय कई विषयों पर विचार करते हैं। इन विषयों में योग भी काफी महत्वपूर्ण स्थान रखते है।
योग कई प्रकार से बनते हैं जैसे ग्रहों के मिलने से, तिथि व नक्षत्र के मिलने से या फिर तिथि और वार के मिलने से (Yoga are combination of planets, tithi and nakshatra or Tithi and var)। योग अगर कार्य की दृष्टि से अनुकूल होता है तो शुभ कहलाता है और अगर कार्य की दृष्टि से प्रतिकूल होता है तो अशुभ कहा जाता है। यहां हम आपसे सिद्धयोग की बात करने जा रहे हैं। इस योग का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है और यह कैसे बनता है आइये इसे जाने:
1.अगर शुक्रवार के दिन नन्दा तिथि(Nanda Tithi) अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी या एकादशी पड़े तो बहुत ही शुभ होता है ऐसा होने पर सिद्धयोग का निर्माण होता है (When nanda tithi like pratipada, Shashti or Ekadshi appears on friday it, generates siddha yoga)।

2.भद्रा तिथि (Bhadra Tithi) यानी द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी अगर बुधवार के दिन हो तो सिद्धयोग बनता है (Siddha yoga is created when Bhadra tithi like Dwitiya, Saptmi, Dwadshi appear on wednesday)।
3.जया तिथि (Jaya Tithi) यानी तृतीया, अष्टमी या त्रयोदशी अगर मंगलवार के दिन पड़े तो यह बहुत ही मंगलमय होता है इससे भी सिद्धयोग का निर्माण होता है।

4.ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत चतुर्थ, नवम और चतुर्दशी को रिक्ता तिथि (Rikta Tithi) के नाम से जाना जाता है, अगर शनिवार के दिन रिक्ता तिथि पड़े तो यह भी सिद्धयोग का निर्माण करती है।

5.पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस को ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत पूर्णा तिथि(Purna Tithi) के नाम से जाना जाता है। पूर्णा तिथि बृहस्पतिवार के दिन पड़ने से सिद्ध योग बनता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सिद्धयोग बहुत ही शुभ होता है (According to the astrology, siddha yoga is auspicious)। इस योग के रहते कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न किया जा सकता है, यह योग सभी प्रकार के मंगलकारी कार्य के लिए शुभफलदायी कहा गया है।

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