धन के उपयोग पर शुक्राचार्य
धर्माय यशसेऽर्थाय कामाय स्वजनाय च.
पञ्चधा विभजन्वित्तमिहामुत्र च मोदते.
- श्रीमद्भागवत (अष्टम स्कंध, अध्याय: १९, श्लोक:३७)
शुक्राचार्य ने राजा बलि से कहा: जो मनुष्य अपने धन को पांच भागों में बाँट देता है - कुछ धर्म के लिए, कुछ यश के लिए, कुछ धन की अभिवृद्धि के लिए, कुछ भोगों के लिए और कुछ अपने स्वजनों के लिए - वही इस लोक और परलोक
दोनों में सुख पाता है.
One who divides his wealth in five parts for religion, reputation, opulence, fulfillment of a desires and his family members, is happy in this world and in the next.
धर्माय यशसेऽर्थाय कामाय स्वजनाय च.
पञ्चधा विभजन्वित्तमिहामुत्र च मोदते.
- श्रीमद्भागवत (अष्टम स्कंध, अध्याय: १९, श्लोक:३७)
शुक्राचार्य ने राजा बलि से कहा: जो मनुष्य अपने धन को पांच भागों में बाँट देता है - कुछ धर्म के लिए, कुछ यश के लिए, कुछ धन की अभिवृद्धि के लिए, कुछ भोगों के लिए और कुछ अपने स्वजनों के लिए - वही इस लोक और परलोक
दोनों में सुख पाता है.
One who divides his wealth in five parts for religion, reputation, opulence, fulfillment of a desires and his family members, is happy in this world and in the next.
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