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Thursday 9 February 2012

दुर्लभ बगिया

दुर्लभ बगिया

दिलीप कुमार सिंह


सफेद जामुन, काले अमरूद और सफेद सेब। यह किसी जादूगर की टोपी से नहीं निकले हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर में धामपुर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्योहारा में कुंवर राधो प्रताप सिंह की वसंत वाटिका आपको ऐसे ही दुर्लभ फलों और वनस्पतियों से चकित कर देगी। वर्ष १९३२ में बनी वसंत वाटिका की देखभाल लगभग डेढ़ दर्जन लोग करते हैं। कुंवर राधो प्रताप सिंह के बेटे कुंवर राणा प्रताप सिंह बताते हैं, ‘मेरे दादाजी को पेड़-पौधों से बहुत लगाव था। पिताजी को भी उन्हीं से प्रेरणा मिली। उनको यह सब करते देख मुझे अच्छा लगता था। अब कहीं कोई दुर्लभ पौधा दिख जाए, तो उसे यहां लगाने की कोशिश होती है। हालांकि इन पौधों में से ज्यादातर के लिए हमारे यहां का मौसम सही नहीं है। इस वजह से इनका बराबर ध्यान रखना पड़ता है।’

वाटिका में आम लोगों के प्रवेश की मनाही नहीं है। अक्तूबर-नवंबर में यहां का नजारा मनोहारी होता है। उस वक्त इस वाटिका में तरह-तरह के फूल खिलते हैं। दुर्लभ पेड़-पौधों की वाटिका होने के बावजूद छोटे कुंवर इसे व्यावसायिक रूप देने के पक्ष में नहीं हैं। पर्यटन के हिसाब से इस वाटिका को विकसित करने के सवाल पर वह कहते हैं, ‘स्योहारा जैसी जगह में पर्यटकों का आना मुश्किल है। पर्यटन के लिए कई सुविधाएं जरूरी होती हैं। वह यहां संभव नहीं।’

लगभग १८ साल की उम्र से ही इस वाटिका की देखभाल कर रहे राम कृष्ण बताते हैं कि पिछले साल जामुन के पेड़ पर अंडे जैसे सफेद फल आए थे। इसका स्वाद आम तौर पर पाए जाने वाले जामुन से कुछ फीका है। इसकी पत्तियां भी थोड़ी अलग हैं। हालांकि अमरूद बहुत मीठे हैं। इस बार काले अमरूद के पेड़ पर बहुत सारे फल आए हैं। पिस्ते में भी फूल आने लगे हैं। वह आगे कहते हैं कि पांच वर्ष पहले तक यहां सफेद और लाल सेब के पेड़ थे, जबकि यह इलाका सेब के लिए अनुकूल नहीं माना जाता। इनके अलावा करीब चालीस साल पुराने दो बादाम के पेड़ भी थे, पर वे आंधी में गिर गए।

२५ बीघे में फैली वसंत वाटिका में पिस्ता, बादाम, चंदन, रुद्राक्ष, छोटी लौंग और लोकाट आदि के दुर्लभ पेड़ भी हैं। पिस्ता, रुद्राक्ष और लोकाट के पौधे कश्मीर से लाकर यहां लगाए गए, तोकाला अमरूद का पौधा कोलकाता से आया था। वहीं सफेद जामुन और लौंग के पौधे आंध्र प्रदेश से लाए गए हैं। प्रतिकूल मौसम में ऐसे दुर्लभ पेड़ों का होना और इनके व्यावसायिक दोहन के सवाल पर खंड विकास अधिकारी, स्योहारा शिव सिंह धनगर कहते हैं कि यहां की मिट्टी और जलवायु में इन पौधों को लगाना फलदायी नहीं है, क्योंकि इनमें स्वाद नहीं होता। 


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