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Tuesday 18 October 2011

दीपावली पूजन जैन समाज

दीपावली पूजन




जैन समाज में दीपावली का पावन पर्व अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति एवं उन्हीं के शिष्य प्रथम गणधर गौतम स्वामी को संध्याकाल में केवल ज्ञान रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति के उपलक्ष्य में मनाते हैं। अतः अन्य सम्प्रदायों से हमारी दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। समस्त जैन श्रावकों को जैनागम के अनुसार ही महोत्सव मनाना चाहिए, अन्यथा मिथ्या क्रिया कहलायेगी। जैन धर्मानुसार जिनालय में एवं शाम को घरों में दीपावली मनाने की विधि इस प्रकार है:-
मंदिर जी में दीपावली की पूजन विधि
कार्तिक कृष्ण चौदस की रात एवं अमावस्या की प्रातः कालीन बेला में श्रावक सामायिक जाप करें, फिर 5 बजे दैनिंदिनि चर्या से निवृत हो कर शुद्ध सोला के वस्त्र धारण करें और लाडू सहित अष्ट द्रव्य ले कर जिनालय जायें। वहाँ सभी एक साथ उत्साह पूर्वक 6 बजे अभिषेक और नित्य पूजन के उपरांत महावीर पूजा और निर्वाण कल्याण की पूजन करें। महावीर स्वामी की पूजा करते समय जब केवल ज्ञान कल्याण का अर्घ चढावें तब केवल ज्ञान के प्रतीक स्वरूप शुद्ध घी के 16 दीपकों में 4-4 ज्योति जलायें। निर्वाण कल्याणक की पूजा के समय जब महावीर स्वामी के निर्वाण कल्याणक का अर्घ चढायें तब निर्वाण कल्याणक पाठ पढकर अर्घ सहित निर्वाण लाडू चढायें तदोपरांत शांतिपाठ एवं विसर्जन करें।
घर में दीपावली पूजन की विधि
सायंकाल लगभग 4 बजे पूजन के शुद्ध वस्त्र धारण कर के शुद्ध प्रासुक जल से पूजन की जल फलादि द्रव्य तैयार करें। मंगलाष्टक पढकर सकलीकरण, तिलक एवं रक्षा सूत्र बन्धन करें। रक्षा मंत्र एवं शांति मंत्र पढते हुए पुष्प क्षेपण करें (इसके सभी पूजन पाठ की पुस्तक में है) . गाय का घी मिलाकर सिंदूर से पूजन स्थल की दीवाल पर इस प्रकार लिखें :
श्री
श्री वीतरागाय नमः
श्री महावीराय नमः
श्री गौतम गणधराय नमः
श्री केवलज्ञान महालक्ष्म्यै नमः
श्री शुभ                                                           श्री लाभ
श्री
श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री
श्री कार पर्वत के नीचे दीवाल से सटाकर एक अच्छी चौकी रखें उस पर बीचों बीच किसी क्षेत्र या जिनालय में स्थित प्रतिष्ठित प्रतिमा की फोटो रखें उसी के सामने आचार्य प्रणीत ग्रंथ चौकी पर बीचों बीच स्थापित करें। ईशान कोण की ओर हल्दी, सुपाडी, सवा रुपये या अधिक 3,5,7 आदि रुपये के सिक्के डालकर पूरा सरसों से भर कर श्रीफल सहित कलश स्थापित करें। आग्नेय दिशा में शुद्ध घी का जलता दीपक स्थापित करें।
यह क्रिया पूर्ण करने के उपरांत श्रद्धा भक्ति के साथ विनय पाठ, पूजन पीठिका, स्वस्ति पाठ, देवशास्त्र गुरु, चौबीसी, आदिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर स्वामी एवं सरस्वती का अर्घ चढाकर गौतम स्वामी की पूजा करें। चौंसठ ऋद्धि के मंत्र बोलते हुए अर्घ्य चढायें। और फिर शांति विसर्जन कर के 16 दीपों में तेल भर कर 4-4 बाती डालकर चौंसठ ज्योति जलायें, तदुपरांत सामूहिक महावीराष्टक पाठ, आरती करें और “’ओं हीं चतुः षष्टि ऋद्धिभ्यों नमः’’ इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
दुकान में दीपावली पूजन
दुकान के समस्त उपकरण साफ करके स्वास्तिक बनायें। दीवाल एवं बही पर चित्र में दर्शाये स्वास्तिक एवं यंत्र बनायें फिर अर्घ चढाकर दीप जलायें एवं महावीराष्टक का पाठ करें।

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नोट
  • दीपोत्सव पूजा के उपरांत मिष्ठान वितरण कर सकते हैं. और फिर एक दूसरे के यहाँ महोत्सव मिलन में जायें।
  • घी का दीपक परमार्थ सिद्धि के लिए एवं तेल का दीपक सांसारिक ऋद्धि-सिद्धि एवं समृद्धि में शुभ माना है. अतः एक घी का एवं 16 दीपक तेल के जलायें।
  • एक दीपक मे चार बाती अनंत चतुष्टय की प्रतीक है।
  • 16 दीपक तीर्थंकर पदवी प्रदायक सोलह कारण भावना के एवं 64 ज्योति 64 ऋद्धि की प्रतीक हैं।
  • पूजन स्थल पर देवी- देवताओं की फोटो आदि रख कर पूजना मिथ्यात्व है।
  • फटाका फोडना मिथ्यात्व तो है साथ ही साथ हिंसा, पर्यावरण प्रदूषण, धन और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।
  • श्री के पर्वत में एक श्री आत्मा का, तीन श्री रत्नत्रय के, पाँच श्री पंच पर्मेष्ठी के, साथ श्री सात तत्वों के और बाजू से 4 श्री की पंक्ति अनंत चतुष्टय के प्रतीक हैं। किन्ही पुस्तकों में 1,2,3,4,5 इस क्रम से श्री पर्वत बनाने का कथन है।
  • घर के मुख्य द्वार के उपर बीचों-बीच अंकित करें,
  • द्वार के आजू–बाजू श्री शुभ- श्री लाभ लिखें एवं आम के 24 पत्तों वाला वन्दनवार लगायें।
  • वन्दनवार, सरसों पूर्ण भरा कलश मिथ्यात्व नहीं परंतु लोक में मंगल का प्रतीक धवलापुस्तक एक में वीरसेनाचार्य महाराज ने कहा है
  • धनतेरस के दिन महावीर पूजा और समवशरण या केवल ज्ञान पूजा करें।

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