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Wednesday 14 September 2011

पंचक

पंचक  
पंचक शब्द का अर्थ है पांच. एक का पांच गुना होना ही पंचक है. ज्योतिष शास्त्र  में धनिष्ठा नक्षत्र 
 
के तीसरे  चरण से  रेवती नक्षत्र पर्यंत पांच नक्षत्रों को पंचक माना गया है.
 
 
जब चन्द्र कुम्भ  एवं मीन राशी में विचरण करता hai तो वह धनिष्ठा के तृतीय और चतुर्थ चरण, शतभिषा, 
 
पूर्वभाद्र पद , उत्तर भद्र पद, रेवती – इन पाच नक्षत्रों में से किसी एक पर होता है.
 
इस समय संपन्न कार्य का परिणाम पांच गुना हुआ करता है. यथार्थ में यह पांच गुनी वृद्धि ही पंचक कही जाती है.
 
संपन्न कार्य शुभ – अशुभ किसी भी तरह का हो सकता है. यदि घर परिवार में इस समय कोई शुभ कार्य होता है 
 
तो निश्चित  ही घर में पांच शुभ कार्य अवश्य होते हैं. यही कारण है कि शुभ कार्यों में पंचक नक्षत्र ग्रहण किया जाता है. 
 
एसा अनुभव में भी आता है कि जो शादियाँ पंचक नक्षत्रों में की जाती हैं  वे पांच गुने उत्साह और उल्लासपूर्वक होती हैं. खुशियों. प्रसन्नताओं  और शुभकामनाओं का अम्बार लग जाता है.
 
तथा उस वर्ष वर – वधु के परिवारों में पांच शुभ कार्य अवश्य होते हैं.
 
द्वितीय पक्ष अशुभ कार्यों का है. अशुभ कार्य पंचक में होने पर उसका पञ्च गुना हो जाता है इसलिए अशुभ कार्यों का परहेज एवं उपचार किया जाता है. जैसा लोक व्यवहार में देखते हैं.
 यदि किसी व्यक्ति की पंचक में मृत्यु हो जाये तो  परिवार या पड़ोस में पांच व्यक्तियों की मृत्यु होगी
 
.  यह निश्चित मान लिया जाता है. और पंचक के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए विभिन्न उपाय किये जाते हैं.
 
शवयात्रा के पीछे राइ बिखेरना, घर के तेल के बर्तन को फेंकना, चाकी की भीर फोड़कर घूरे पर डालना, पांच पुतले शव पर रखना आदि अनेक उपाय पंचकों की अशुभता के निवारण के लिए किये जाते हैं.
 
पंचकों में ये कार्य कभी न करें -
 
तिनकों का  संचय – कुशा, घास – फूस, भूसा आदि एकत्रतित न करें.
 
लकड़ी का संचय – जलने के लिए लकड़ी – कंडा आदि, तख्ता , बोर्ड, चोकी, तखत, पलंग, कुर्सी, सोफा , दीवान,फर्नीचर आदि लकड़ी का कोई भी गृह एवं व्यहरोप्योगी सामान खरीदना और संचय करना पंचक में मन होता है.  
 
गृह्च्छादन – घर की छत पटवाना, लेंटर डलवाना , चद्दर या छप्पर डलवाना भी पंचक के समय शुभ नहीं होता.
शय्या बनाना – चारपाई, पलंग, सोफा, कुर्सी, चूल्हा, चौकी, भट्टी बनाना आदि उक्त सभी बैटन का पंचक में निषेध किया गया है.
 
दक्षिण यात्रा – दक्षिण दिशा का स्वामी य६अम है. यह पंचों में पांच गुना शक्तिशाली होता है. तथा इस दिशा की चुम्बकीय शक्ति भी प्रबल हो जाती है. ग्रहों की अशुभ स्तिथ्ती और पंचक प्रभाव यात्रा में घातक हो सकते हैं. जहाँ तक संभव हो स्वयं और परिवार सहित यात्रा न करना ही श्रेयष्कर है
.
दाहकर्म – पंचकों में प्राणी की मृत्यु अशुभ होती है. यदि प्राणी की मृत्यु अंतिम पंचक में हुई हो और पंचक निकालने के बाद दह संस्कार संभव हो तो इसी स्थिति में पंचक में दह संस्कार नहीं करना चाहिए. यदि दह संस्कार किया जाये तो पुत्र विधान पूर्वक किया जाना चाहिए. इससे पंचक जन्य  प्रभाव टल जाते हैं.
 
पंचक से पलायन नहीं – यदि पंचक के दिनों में कोई कार्य नितांत आवश्यक है तब 
 
धनिष्ठा नक्षत्र के अंत की, 
 
शतभिषा  नक्षत्र के मध्य की
 
, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के आदि की
 
, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की अंत की पांच घडी का समय छोड़कर शेष समय शुभ होता है. इससे पंचक जन्य प्रभाव टल जाते हैं. उसमें कार्य किये जा सकते हैं.
 
रेवती नक्षत्र का सम्पूर्ण समय अशुभ होता है अतः इसका पूर्णतः परित्याग करना चाहिए.

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