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Tuesday 13 September 2011

पितृदोष

ज्योतिष में पितृदोष निवारण


-ज्योतिष के अनुसार पितृदोष निवारण के लिए सर्वप्रथम यह ज्ञात करना होता है कि किस ग्रह के कारण आपकी जन्मपत्रिका में पितृदोष उत्पन्न हो रहा है? इनमें सूर्य से पिता अथवा पितामह, चंद्रमा से माता अथवा मातामह, मंगल से भ्राता अथवा भगिनी तथा शुक्र  से पत्नी का विचार किया जाता है। इस प्रकार ज्ञात किया जा सकता है कि पितृदोष किस पितर के कारण है?

उक्त ग्रहों के अतिरिक्त गुरू, शनि एवं राहु की भूमिका प्रत्येक पितृदोष में महत्वपूर्ण होती है। मुख्य रूप से इन तीन ग्रहों के पीड़ित होने के कारण ही पितृदोष उत्पन्न होता है। अधिकांश व्यक्तियों की जन्मपत्रिका में इन तीन ग्रहों के संबंध बनाकर अशुभ भावों में स्थित होने अथवा पीड़ित होने पर इस प्रकार का दोष उत्पन्न होता है, इसलिए जन्मपत्रिका में किसी भी प्रकार का पितृदोष हो, तो

विभिन्न उपायों के अतिरिक्त पांचमुखी एवं आठमुखी रूद्राक्ष धारण करें। इन तीनों रुद्राक्षों को एक साथ धारण करने से पितृदोष का शीघ्र निवारण संभव हो जाता है और पितरों को शांति भी मिलती है। इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इनके अन्य उपाय भी करने चाहिए। इन तीनों ग्रहों के मंत्रों का जप एवं स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है

।यदि जन्मपत्रिका में गुरू बलवान हो, तो वह अकेला ही ऐसे दोषों को समाप्त करने में सक्षम है। गुरू को बली करने के लिए ज्योतिषीय परामर्श से पुखराज रत्न भी धारण किया जा सकता है। इसके अलावा प्रत्येक अमावस्या के दिन दोपहर के समय घर में गुग्गुल की धूप प्रज्वलित कर पूरे घर में उसकी धूप देनी चाहिए

। प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों के निमित्त  भोजन निकालकर गाय, कुत्ते और कौवे को खिलाने के पश्चात किसी ब्राम्हण को खिलाएं। इसके अतिरिक्त और सबसे जरूरी बात, श्राद्ध पक्ष में पितरों को तर्पण जरूर करें। यह सबसे उपयुक्त समय है पितृदोष निवारण का।

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