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Saturday 3 September 2011

२७ नक्षत्र


नक्षत्र के सम्बन्ध में जानकारी


२७  नक्षत्र होते है नक्षत्रो के देवताओं का वर्णन किया जा रहा है |
अश्वनी का स्वामी = नासत्य ( दोनों अश्वनी कुमार )
 भरणी का स्वामी =अन्तक ( यमराज )
कृतिका का स्वामी = अग्नि
रोहिणी का स्वामी = धाता (ब्रह्मा)
म्रगशिरा का स्वामी = शशम्रत ( चन्द्रमा )
आर्दा का स्वामी = रूद्र ( शिवजी )
पुनर्वसु का स्वामी = आदिती ( देवमाता )
पुष्य का स्वामी =वृहस्पति
श्लेषा का स्वामी =सूर्य
मघा का स्वामी = पितर
पूर्व फाल्गुनी का स्वामी = भग्र ,
उत्तरा फाल्गुनी का स्वामी = अर्यमा
हस्त का स्वामी = रवि ,
चित्र का स्वामी = विश्वकर्मा ,
स्वाती का स्वामी = समीर ,
विशाखाका स्वामी = इन्द्र और अग्नि ,
अनुराधा का स्वामी = मित्र ,
ज्येष्ठा का स्वामी = इन्द्र ,
मूल का स्वामी = निर्रुती   ( राक्षस )
 पुर्वाशाडा का स्वामी = क्षीर (जल ) ,
उत्तरा शाडा का स्वामी = विश्वदेव    /  अभिजित = विधि विधाता ,
श्रवण का स्वामी गोविन्द ( विष्णु ) ,
धनिष्ठा का स्वामी = वसु ( आठ प्रकार के वसु ) ,
शतभिषा का स्वामी = तोयम ,
पूर्वभाद्र का स्वामी = अजचरण ( अजपात नामक सूर्य ),
उत्तरा भाद्रपद का स्वामी = अहिर्बुध्न्य ( नाम का सूर्य )  , 
रेवती का स्वामी = पूषा ( पूषण नाम का सूर्य ) |
नोट -- जो २७ नक्षत्रो के स्वामी कहे गए है उन्ही देवताओं की अर्जन करना भाग्य वर्धक रहता है | जो दोष है उनकी शांति नक्षत्र के स्वामी की करनी चाहिए | भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए नक्षत्रो की पूजा अवश्य करनी चाहिए | लोग कहते है की  परिश्रम के अनुसार लाभ नहीं मिल रहा है , रात दिन मेहनत करते है , परिवार में शांति नहीं रहती है इन्ही का पूजन अवश्य करना चाहिए |

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