आध्यात्मिक ऊँचाई पर पहुँचने के लिए सिद्ध योगी योग,
ध्यान और ज्ञान द्वारा कुंडलिनी जागृत करते हैं।
ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए योगियों द्वारा कुंडलिनी जागृत
करने के लिए की जानेवाली यह प्रक्रिया अत्यंत कठिन
और मन की संपूर्ण एकाग्रता चाहनेवाली प्रक्रिया है।
व्यक्ति की कुंडली में कैसे योग हों तो वे
इस सिद्धि को प्राप्त कर सकेंगे,
इसे जानने के लिए ग्रहों और शरीर में निहित
विविध चक्रों के बीच का सम्बंध जानना महत्त्वपूर्ण है।
1. कुंडलिनी- राहु
2. मूलाधार चक्र- शुक्र
3. स्वाधिष्ठान चक्र- मंगल
4. मणिपुर चक्र- सूर्य
5. अनाहत (हृदय) चक्र- गुरु
6. विशुद्ध (सुर) चक्र- बुध
7. अग्न्य (तीसरा नेत्र) चक्र- चंद्र
8. सहस्राधार चक्र- शनि
9. ओजस (समाधि)- केतु
कुंडली में निम्नलिखित ग्रह योग हो तो
कुंडलिनी जागृत करने में सरलता रहती है।
1. गुरु और सूर्य, चंद्र अथवा राहु से केन्द्र में या
त्रिकोण में हो। उनकी युति या प्रतियुति हो
अथवा परस्पर परिवर्तन योग में हो।
2. शुक्र, शनि या गुरु से केन्द्र में या त्रिकोण में हो अथवा उनकी
युति, प्रतियुति या परिवर्तन योग होता हो तब।
3. गुरु आठवें भाव में हो अथवा आठवें भाव के साथ उसका
सम्बंध हो अथवा आठवें भाव में अधिक ग्रह पड़े हों।
4. दसवें भाव के अधिपति के साथ शुक्र केन्द्र में त्रिकोण में,
परिवर्तन योग में, युति या प्रतियुति में हो।
जन्म कुंडली में उपर्युक्त बताए गए एक या अधिक योग बनते हों
तो कुंडलिनी जागृत
करना अधिक सरल रहता है। जन्म कुंडली में
अग्नि या वायुतत्व की राशि
में राहु पड़ा
हो तो दैवी शक्ति प्राप्त करने की तरफ व्यक्ति
खूब तेजी से आगे बढ़ सकता है,
ऐसा माना जाता है। ऐसा व्यक्ति कोई सिद्धि भी प्राप्त कर सकता है।
किसी सत्पुरुष (संत) से दीक्षा लेने के लिए गोचर में शनि और
चंद्र अनुकूल स्थिति में होना आवश्यक और महत्वपूर्ण है
। दीक्षा के समय गुरु और शुक्र सूर्य के साथ युति न करते हुए होना चाहिए।
इसके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है
कि व्यक्ति ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर विजय प्राप्त कर दिव्य जीवन की तरफ आगे बढ़ने में बहुत हद तक सफलता प्राप्त कर सकता है।
कुण्डलिनी ध्यान
यह एक अद्भुद ध्यान पद्धति है. और इसके जरिए
मस्तष्क से हृदय में उतरना आसान होता है.
बुद्धिवादी से भाववादी बनना आसान होता है.
एक घंटे के इस ध्यान में पंद्रह मिनट के चार चरण हैं
. तीसरे और चौथे चरण में आंखें बंद रखनी हैं
. सांझ के समय इसका अभ्यास सबसे उपयुक्त है.
आप चाहें तो हर चरण पांच-दस मिनट का
भी निर्धारित कर सकते हैं. कुछ दिन इसका
अभ्यास करने के बाद इसे छोड़ा जा सकता है
. फिर कभी जरूरत महसूस हो तो दोबारा
अभ्यास किया जा सकता है.
पहला चरण
शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें. और पूरे शरीर को कंपाएं.
अनुभव करें कि उर्जा पांव से उठकर ऊपर की ओर बढ़ रही है.
दूसरा चरण
किसी कैसेट को चालू कर लें.
जो संगीत आपको पसंद हो उसे लगा लें
. और पंद्रह मिनट उस संगीत की धुन पर नाचिए.
नृत्य बहुत अद्भुद विधा है. पंद्रह मिनट दिल खोलकर नाचें.
तीसरा चरण
बैठ जाए. या फिर स्थिर होकर खड़े रहें.
चौथा चरण
निष्क्रिय होकर लेट जाएं. साक्षीभाव से शांति में डूब जाएं.
(इस ध्यान विधि का उल्लेख रजनीश की पुस्तकों में मिलता है
. इसके प्रयोग आज भी उनके आश्रमों में होते हैं.
यहां मैं रजनीश की ही एक पुस्तक से
इस विधि का उल्लेख कर रहा हूं लेकिन
अब वह दुर्लभ पुस्तक कहीं मिलती नहीं.
अब रजनीश की जो किताबें मिलती हैं
उनमें इन विधियों का सटीक
उल्लेख नहीं बल्कि लंबे-चौड़े प्रवचन होते हैं.)
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