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Saturday 3 September 2011

प्रश्न विचार ज्योतिष शास्त्र

प्रश्न विचार ज्योतिष शास्त्र को प्रत्यक्ष शास्त्र कहा जाता है। ""प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रं चन्द्रार्कौ यत्र साक्षिणों""। ज्योतिष की विविध शाखाऔंमें प्रश्न विज्ञान एक ऎसी शाखा है जिसकी सभी दैवज्ञों को सर्वदा सहायता लेनी प़डती है। जातक व प्रश्न ये दो ऎसे क्षेत्र हैं, जिनके बिना ज्योतिषी एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकता।
प्रश्न दो प्रकार के होते हैं। पहला जब लोग अपनी परेशानी या उलझन मेें प़डकर ज्योतिषी के पास अपनी चिंता अथवा परेशानी का समाधान करने आते हैं। जैसे- मेरे मुकदमें में क्या होगाक् अमुक बीमार है अच्छा हो जायेगाक् यात्रा में गया हुआ अभी तक नहीं लौटा उसका क्या हुआक् मैने परीक्षा दी है अथवा इन्टरव्यू दिया है रिजल्ट क्या रहेगाक् मेरे स्थान परिवर्तन का योग है अथवा नहींक्
इसके अलावा अनावश्यक प्रश्न भी होते हैं जो समय बर्बाद करने अथवा ज्योतिषी की परीक्षा लेने के निमित्त भी हो सकते हैं। जैसे बताओ मेरी मुटी में क्या हैक् मैने क्या खर्चा थाक् मेेरे मन में क्या हैक् इस तरह के प्रश्न में बहुत विचार कर उत्तर देने की आवश्यकता होती है।
यदि प्रश्न कर्ता की जन्म पत्रिका भी उपलब्ध हो तो उससे प्रश्न फल की पुष्टि की जा सकती है। जो योग देखकर बता दिया है कि इसका ऎसा फल होगा, परंतु इसके अतिरिक्त ग्रह और राशियों के विचार से उनके गुण धर्म, ग्रहों के शुभत्व-पापत्व, स्थान स्वामित्व, दृष्टि, मैत्री- उच्च-नीच-स्वक्षेत्र, मित्र या शत्रुक्षेत्र आदि कई प्रकार के विचारों के आधार पर फलादेश करना प़डता है। जैसे किसी न्यायाधीश के सम्मुख कोई अभियोग पेश होता है तो वह वादी प्रतिवादी एवं गवाहों आदि के सभी के आधार पर अपना फैसला देता है। इसी प्रकार ज्योतिषी को उपरोक्त ग्रह स्थितियों पर विचार कर एवं देश-काल, प्रश्न कर्ता की अवस्था, वंश-परिस्थिति आदि सब बातों को ध्यान में रख कर फल निर्णय करना होता है।
किसी विशेष प्रश्न के निर्णय के निमित कई प्रकार के योग होते हैं जिनका स्पष्टीकरण गणना की शुद्धता से होता है परंतु इसके अतिरिक्त प्रश्नकर्ता के मुख से निकले शब्द, उसके अंग-स्पर्श, शकुन आदि का भी प्रश्न फलादेश में विशेष महत्व है।
यदि किसी प्रश्न में लग्नेश लग्न तथा कार्य भाव को और कार्येश को देखता हो तो प्रश्न का शुभ फल प्राप्त होगा।
प्रश्न में जिस भाव से संबंधित प्रश्न हो वह कार्यभाव कहलाता है। यदि लग्नेश और कार्येश में इत्थशाल हो तो प्रश्न का शुभ फल प्राप्त होगा।
यदि लग्न को लग्नेश व शुभ ग्रह देखते हों तथा कार्यभाव को कार्येश और शुभग्रह देखते हों तो कार्य के संबंध में शुभ फल प्राप्त होगा और यदि इत्थशाल हो तो शुभ फल प्राप्त होगा।
यदि लग्न को लग्नेश व शुभ ग्रह देखते हों तथा कार्यभाव को कार्येश और शुभ ग्रह देखते हों तो कार्य के संबंध में शुभ फल प्राप्त होगा।
यदि लग्न में पाप ग्रह हों या पाप ग्रहों की दृष्टि लग्न पर प़डती हो तथा कार्य भाव में पाप ग्रह हो या पाप ग्रहों की दृष्टि प़डती हो तो कार्य की हानि होगी।
यदि लग्न और कार्यभाव पर पापग्रहों और शुभग्रहों का मिला-जुला असर हो तो कष्ट से या विशेष परिश्रम से कार्य लाभ होगा।
यदि लग्न को लग्नेश व चंद्रमा दोनों देखते हों तो प्र्रश्न का शुभ फल प्राप्त होगा।
यदि लग्न और लग्नेश बलवान हो तो प्रश्न का शुभफल प्राप्त होगा।
यदि लग्नेश और कार्येश में योगों की परिभाष्ाा का संबंध हो तो जिस ग्रह के संबंध से यह योग होता है उस ग्रह से इंगित व्यक्ति के कारण सफलता प्राप्त होती है।
प्रश्न के समय लग्न सम राशि या विषम राशि में हो और नवांश कौनसा होगा, प्रश्न किस संबंध में होगा
यह निम्न चार्ट से स्पष्ट होता है।

शुत्र के आक्रमण संबंधी प्रश्न हो तो-

1.   2 5, 6 भाव में पाप ग्रह सूर्य, मंगल या शनि हो तो शत्रु रास्ते से वापिस लोट जायेगा।
2.   यदि पाप ग्रह सूर्य, मंगल या शनि चतुर्थ भाव में हो तो समीप आया शत्रु हार मान कर चला जायेगा
3.   यदि चौथे भाव में मीन, वृश्चिक, कुंभ, कर्क राशियों के स्वामी हो तो शत्रु पराजित होगा।
4.   यदि चौथे भाव में 1,2,5 या 9 (मेष, वृष, सिंह या धनु राशि) में हो तो शत्रु हार मानकर भाग जायेगा। प्रश्न यदि रोगी के संबंध में हो तो  
      निम्नानुसार गणना करते हैं।
षष्ठेश पाप ग्रह के लग्न में है तो रोगी की मृत्यु होगी अर्थात लग्नेश पाप ग्रह हो और षष्टेश वहां स्थित हो।

5.   यदि चतुर्थ और अष्टम स्थान तथा पाप ग्रहों के मध्य चंद्रमा की स्थिति हो तो मृत्यु अवश्य भावी है।
6.   यदि शुभ ग्रह बलवान होकर चंद्रमा को देखे तो रोगी आगे चलकर रोग मुक्त हो जायेगा।
7.   यदि चंद्रमा लग्न में और सूर्य सप्तम में हो तो रोगी की मृत्यु हो जायेगी। 
8.   यदि लग्न में पाप ग्रह हो तो वैद्य की दवा से रोग बढे़।
9.   यदि लग्न में शुभ ग्रह हो तो वैद्य के वचन अमृत समान जाने।
10. यदि रोगी और वैद्य में, औषध और रोग में मित्रता हो तो रोग शान्ति हो। शुत्रता हो तो रोग बढ़ेगा।
11.  यदि लग्नेश बलवान हो, शुभ ग्रह केन्द्र अथवा अपनी उच्चाराशि या त्रिकोण में हो तो रोगी बच जाये।
12.  यदि एक भी बलवान शुभ ग्रह लग्न में हो तो वह रोगी की रक्षा करता है।
13.  यदि शुभ ग्रह नवम व तीसरे स्थान पर हो तो रोग नाश करते हैं।
उक्त संदर्भ में राहुल महाजन पुत्र स्व. प्रमोद महाजन के लिये दिनांक 03-06-06 को सांय 17.35 पर प्रश्न प्रछा गया कि राहुल महाजन बचेंगे कि नहीं। उस समय प्रश्न कुण्डली निम्न बनी-

उक्त कुण्डली में लग्न में गुरू हैं जो चिकित्सक का भाव है। अत: लग्न में सौम्य ग्रह है।
2 सप्तम भाव में सौम्य ग्रह शुक हैं जो रोग का भाव है।
2 शुक लग्न पर जो उनकी उच्चाराशि है तथा स्वगृह है पर दृष्टिपात कर रहे है।
2 बृहस्पति चिकित्सक भाव लग्न में बैठकर सप्तम भाव जो रोग का भाव है और उनकी मित्र राशि है, पर दृष्टिपात कर रहे है। अत: रोगी के बचने की पूरर्गü संभावना है। परंतु दशक भाव जो रोगी का भाव है, में क्रूर ग्रह शनि व मंगल स्थित हैं। अत: बचने के बाद भी शरीर में दुष्प्रभाव रहेंगे और संभवत: कोई ऎसा दुष्प्रभाव जो काफी समय तक परेशान करेगा। यह जग विदित है कि राहुल महाजन बच गये और अब स्वस्थ है।

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