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Thursday 4 August 2011

नवरात्र में ग्रह शांति

नवरात्र में ग्रह शांति
चैत्र मास के नवरात्र वासंती नवरात्र कहलाते हैं और नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना कर ना सिर्फ शक्ति संचय किया जाता है वरन् नव ग्रहों से जनित दोष्ाों का शमन भी इस अवधि में सुगमता से किया जा सकता है।

नवरात्र में ग्रह शांति
ज्योतिष्ा शास्त्र के अनुसार प्रत्येक प्राणी किसी न किसी ग्रह बाधा से पीडित रहता है। यदि ये सौम्य ग्रह है, तो तकलीफ का स्तर कुछ कम होता है और क्रूर ग्रहों द्वार पीडित रहने पर अत्यंत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ग्रहों की शांति हेतु यंत्र, मंत्र या तंत्र तीनों में से किसी एक को आधार बनाकर मां दुर्गा के शक्ति पर्व नवरात्रि में आराधना की जाए, तो ग्रहजनित बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है।

आराधना कैसे करें
जहां पर मां दुर्गा की कलश सहित स्थापना की गई है, वहां एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और चावल की ढेरी बनकर उस पर निम्न यंत्र स्थापित करें-
बुध शुक्र चंद्र
गुरू सूर्य मंगल
केतु शनि राहु

इस यंत्र की नवग्रहों के मंत्रों से पूजा करें और मां दुर्गा से ग्रह जनित बाधाओं से राहत प्रदान करने की प्रार्थना करें। प्रथम नवरात्र से नवमी तक निम्न क्रम में "मंगल पड़वा को, द्वितीया को राहु, तृतीया को गुरू, चतुर्थी को शनि, पंचमी को बुध, ष्ाष्टी को केतु, सप्तमी को शुक्र, अष्टमी को सूर्य एवं नवमी को चंद्रमा की पूजा करें। ग्रह से संबंधित मंत्र की एक माला, पंचमुखी रूद्राक्ष से और ग्रह संबंधी अष्टोतर शतनामावली का पाठ करें, जैसे पड़वा को नियमित पूजा, आराधना और जप के पश्चात मंगल का बीज मंत्र "ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाये नम:" का जप करें और फिर मंगल की अष्टोतर शतनामावली का पाठ करें। इसी प्रकार ऊपर बताए क्रमानुसार शेष्ा दिन जप करें, दसवें दिन हवन करें एवं सभी ग्रहों के मंत्रों से 11-11 आहुतियां दें। यंत्र को संभाल कर पूजा घर में रखें। इससे ग्रह जनित समस्त बाधाओं का निदान होगा। सुविधा हेतु समस्त ग्रहों के मंत्र ये हैं-

सूर्य - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों स: सूर्याय नम:
चंद्र - ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:
मंगल - ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
बुध - ॐ ब्ा्रां ब्ा्रीं ब्ा्रौं स बुधाय नम:
गुरू - ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
शुक्र - ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राये नम:
शनि - ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
राहु - ॐ भ्रां भ्रीं भौं स: राहवे नम:
केतु - ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:

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