* रुद्र्पाठके तीन मुख्य प्रभेदों का उल्लेख मेरुतंत्र में पाया जाता है रुद्रीभरेकादशभि: लघुरुद्र: प्रकीर्तित:! अनेन सिक्तं येर्लिंग ते न भास्करम !! रुद्रैकादशिनी के एक बार पारायण का नाम ही "लघुरूद्र" है! रूद्रपारायण इसी का नामांतर है! इस लघुरूद्र-विधि से लिंगाभिषेचन करनेवाला शीघ्र ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है! लघुरूद्र के ग्यारह आवृत्तियों के समाहार-पाठ और जपको "महारुद्र" कहते है, जिससे जप-होमादि करने से दरिद्री भी भाग्यवान बन जाता है! महारुद्र के पाठपूर्वक किया गया होम सोमयाग का फल प्रदान करता है! महारुद्र पाठ के एकादशा वृत्तियों से [ रुद्राध्याय के ११ ग़ूणा ११=१२१ एक सौ इक्कीस संख्या में जप करने से] समाहत-पाठ विधिको "अतिरुद्र" कहते हैं, जिससे ब्रह्मह्त्यादि निष्कृति रहित पापों का भी प्रक्षालन हो जाता है! इस पाठ की कोई तुलना ही नहीं है! सदैव रूद्र जप करने वाले को शीघ्र ही ज्ञानोदय हो जायगा! यदि दिन में किसी को थोड़ा अवकाश मिल जाय तो उस समय यदि केवल एक बार भी शुद्ध रीति से रूद्र जप करे तो उसे भी ज्ञान-प्राप्ति हो जाती है! "कैवाल्योपनिषद" में भी रुद्राध्याय के एक बार जप करने मात्र से गान प्राप्ति बतायी गयी है----- "य: शतरुद्रीयमधीते सर्वदा सकृदा जपत ज्ञानमाप्नोति !" *************रूद्र मन्त्रों का विनियोग एवं विविध उपासनापद्धतियाँ ************ रूद्र मन्त्रों के अनेकानेक विनियोग एवं उपासनापद्धतियों का विवेचन किया गया है! उनमें से कुछ काम्योपासनाओं का परिचय इस प्रकार है----- १---राज्य प्राप्ति के लिये-----घृताक्त पायस को रुद्राध्याय से अभिमंत्रित करने के उपरांत अयुत संख्या में " मानस्तो के तनये " इस मन्त्र से उसका विधिपूर्वक होम करने से राज्य की प्राप्ति होती है! २---राज्य भोग के लिये------"प्रमुन्च धन्वस्त्व" इस मन्त्र से भगवान रूद्र पर एक लाख संख्या में सोगंधिक कमल तथा कुमुदों से पूजन करने से राजा ऐश्वर्य को प्राप्त कर लेता है! ३---श्री-वित्त-द्रव्य-प्राप्ति के लिये--------रूद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र में किसी एक से अभिमंत्रित खीर को अयुत संख्या में हवं करने से सम्पत्ति और शोभा की प्रचुर मात्रा में उपलब्धि बतायी गयी है! " इमा रुद्राय --इस मन्त्र से लाख संख्या में तिलहोम करने से अशेष धन प्राप्ति का निर्देश है! अपने ही रसोई घर की अग्नि में " प्रमुन्च धनवनस्त्व ." इत्यादि मन्त्रों से आठ सहस्त्र पर्याय चरुहोम [ अन्न का हवन] करने से अक्षय द्रव्य सिद्धि बतायी गयी है! ४--सुवृष्टि और सुभिक्ष के लिये-------"असौ यस्ताम्रो" इत्यादि मन्त्र से वेतस-समिधों से अयुत संख्या में होम करने पर भगवान आदित्य [रूद्र की अष्ट मूर्तियाँ में एक है] संतुष्ट होकर पानी बरसाते हैं! प्रतिदिन उभय संध्याओं में सुर्योंपस्थान-मन्त्रों के साथ साथ " असौ यस्ताम्रो " इत्याद्युपर्युक्त मन्त्र जप करने से अक्षय अन्न की सिद्धि होती है! ५--रोगनाश और आयुर्वृद्धि के लिये----रविवार के दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दरकार उनसे सहस्त्र संख्या में शतरुद्रिय का पाठ करवाना से व्याधि का नाश होता है, और वह यजमान शतायु होता है! महारुद्र पाठ के उपरान्त " आरात्ते गोध्नं." इत्यादि मन्त्र से षोडशोपचार पूजन करके तत्पश्चात उसी मन्त्र का सहस्त्र जप करने से आयुर्वृद्धि होती है! " मा नो महान्तमुत " इत्यादि मन्त्र से अयुत संख्या में तिलों की आहुतियों के चढाने से बाल से लेकर वृद्धों तक पूरे परिवार का स्वास्थ्य सक्षेम ठीक होता है! ६--पुत्र प्राप्ति क्र लिये----" परिणो रुद्रस्य" इत्यादि मन्त्र से पीपल की समिधाओं से अयुत संख्या में होम और जपादि करने से आयुष्मान पुत्र की प्राप्ति होती है! ७--रक्षा और क्षेम के लिये -----"नमो भवाय च" नमो ज्येष्ठाय च" इन दोनों मन्त्रों से भस्म को अभिमंत्रित कर कुमारादि ग्रहगण से पीड़ित बालकों के ललाटपर तिलक लगाने से वे ग्रहपीडाओं से मुक्त हो सुखी हो जाते हैं! "या ते रूद्र शिवा तनू. " इस ऋक-मन्त्र से प्रत्येक सूत्र को हजार संख्या में अभिमंत्रित कर रुद्रैकादशिनीका पाठ करते हुए उन सूत्रों से एकादश गाँठ लगाकर बालकों और गर्भिणी स्त्रियों के हाथ में बाँध दें तो वे सुखपूर्वक रहेंगे! गर्भिणी का प्रसव सुखपूर्वक होगा! अग्नि-चोर-प्राणभयादि सनकत की परिस्थितियों में " मीढुष्टम शिवतम " इत्यादि मन्त्र के जप करने से भय मुक्त हो सकुशल अपने घर पहुँच जाता है! ८---सर्वकामनाओं की सिद्धि के लिये---- रुद्राध्याय के केवल पाठ अथवा जप से ही समस्त कामनाओं की पूर्ति हो जाती है! शत रुद्रिया पाठ अथवा जप समस्त वेदों के पारायण के तुल्य माना गया है! समग्र वेद का एक बार पारायण करने से जिस प्रकार पापों से मानव की शुद्धि होती है, उसी प्रकार रुद्राध्याय के पाठ के उपरांत पापों का क्षालन हो जाता है! रूद्र------- स ब्रह्मा स शिव: सेंद्र: सोSक्षर परम: स्वराट! स एव विष्णु: स प्राण: स कालोSग्नि: स चन्द्रमा:!! वह परब्रह्म परमात्मासा ही ब्रह्म है, वह शिव है, वह इंद्र के सहित सम्पूर्ण देवरूप है, वह अविनाशी सर्वोत्कृष्ट और स्वयं प्रकाश है! वही विष्णु है, वह हिरण्यगर्भ रूप प्राण है, वह काल, अग्नि और वही चन्द्रमा है! सर्वाननशिरोग्रीव: सर्वभूतगुह्यशय:! सर्व व्यापी स भगवांस्तस्मात सर्वगत: शिव:!! उस परमात्मा के सभी ओर मुख, मस्तक तथा ग्रीवा है. क्योंकि वह सम्पूर्ण भूत-प्राणीयों के ह्रदय में स्थित है! वह भगवान सर्व्वुआपक है! अत: सर्व गत और कल्याण-स्वरुप है! |
We cannot change the circumstances in which our soul chose to be born, but we can definitely change the circumstances in which we grow.ASTROLOGY, VASTU SASTRA, AURA, AROMA. SHIVYOG,ARTOF LIVING, ISHAYOG,OSHO AND NEWAGE MEDITATION अध्यात्म, ज्योतिष, यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र, वेद, पुराण, इतिहास, गुढ़-रहस्य समस्त समस्या का निराकरण सम्भव नहीं है, मात्र कुछेक समस्या का ही समाधान सम्भव है। Accurate Horoscope Analysis and Remedies for All Problems
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Saturday 30 July 2011
रुद्र्पाठ
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