Search This Blog

Thursday 30 June 2011

पितृदोष निवारण


पित्र या पितृ या पिता का भाव - जन्म कुंडली का नवम भाव बेहद महात्वपूर्ण भाव होता है । यह भाव जहां पिता के सुख, आयु व समृध्दि का कारक है वहीं यह जातक के स्वयं के भाग्य, तरक्की, धर्म, संबधी रूझान को बताता है ।
सूर्य पिता का कारक होता है, वहीं सूर्य जातक को मिलने वाली तरक्की, उसके प्रभाव क्षेत्र का कारक होता है। ऐसे में सूर्य के साथ यदि राहु जैसा पाप ग्रह आ जाए तो यह ग्रहण योग बन जाता है अर्थात सूर्य की दीप्ति पर राहु की छाया पड़ जाती है । ऐसे में जातक के पिता को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है, जातक के भी भाग्योदय में बाधा आती है, उसे कार्यक्षेत्र में विविध संकटों का सामना करना पड़ता है। जब सूर्य और राहु का योग नवम भाव में होता है तो इसे पितृ-दोष, पितृदोष, पित्रदोष या पित्र दोष कहा जाता है ।
सूर्य और राहु की युति जिस भाव में भी हो उस भाव के फलों को नष्ट ही करती है और जातक की उन्नति में सतत बाधा डटालती है । विशेषकर यदि चौथे, पांचवे, दसवें, पहले भाव में हो तो जातक का सारा जीवन संघर्षमय रहता है । सूर्य प्रगति, प्रसिध्दि का कारक है और राहु केतु की छाया प्रगति को रोक देती है । अत: यह युति किसी भी भाव में हो मुश्कलें ही पैदा करती है ।
निवारण - पितृ दोष के बारे में मनीषियों का मत है कि पूर्व जन्म के पापों के कारण या पितरो के शाप के कारण यह दोष कुंडली में प्रकट होता है । अत: पित्र का निवारण पितृ पक्ष में शास्त्रोक्त विधि से किया जाता है ।
अन्य उपाय -
(1) प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है ।
(2) प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है ।
(3) पिता का आदर करने, उनके चरण स्पर्श करने, पितातुल्य सभी मनुष्यों को आदर देने से सूर्य मजबूत होता है ।
(4) सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है ।
(5) सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कूंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है ।
यह तय है कि पितृदोष होने से जातक को श्रम अधिक करना पड़ता है, फल कम व देर से मिलता है । अत: इस हेतु मानसिक तैयरी करना व परिश्रम की आदत डालना श्रेयस्कर रहता है ।

No comments:

Post a Comment