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Tuesday 28 June 2011

यन्त्रराज'---श्री यन्त्र


साधना की सरल विधि
शास्त्रवर्णित रुप में तो श्रीयन्त्र की साधना बहुत जटिल है, पर जनसामान्य के लिए विकल्प रुप में उसका सरलीकरण भी किया गया है। निम्नलिखित विधि से यदि श्रीयन्त्र की साधना की जाय तो निश्चित रुप से महालक्ष्मी की कृपा-प्राप्ति का अनुभव होता है। विघ्न- बाधाओं, आभावों का निवारण करके, सौम्य और समृद्धि देने मे यह यन्त्र विश्व का सर्वाधिक आशुफलदायक साधन प्रमाणित हुआ है।
सबसे पहले किसी शुभ मुहूर्त में यन्त्र की रचना करें । स्वयं न कर सके तो किसी दूसरे का सहयोग ले सकते है। तदुपरान्त किसी योग्य पण्डित के द्वारा उसकी प्राण- प्रतिष्ठा कराएं और विधिवत अपने पूजा घर में स्थापित कर दें । फिर दैनिक पूजा में अन्य देवी-देवताओं की भांति इस यन्त्र की भी पूजा करें । यदि आपके पास और कोई देव चित्र या प्रतिमा नही है, तो केवल इसी यन्त्र की आराधना करें। वस्तुतः यह स्वयं ही लक्ष्मी का साकार रुप होता है, अतः इसकी पूजा से लक्ष्मी साधना का पूर्णफल प्राप्त होता है।
पूजा के लिए स्नानोपरान्त स्वच्छ-शुद्ध वस्त्र धारण करें फिर यन्त्र के सम्मुख-आसन (कम्बल अथवा कुशासन) पर बैठक निम्नलिखित मन्त्र पढते हुए यन्त्र को प्रणाम करें-
दिव्या परां सुधवलारुण चक्रयातां,
मूलादि बिन्दु परिपूर्ण कलात्म रुपाम्॥
स्थित्यात्मिकां शरधुनु सृणि पाश हस्तां,
श्री चक्रतां परिणतां सततं नमामि ॥
श्री यन्त्र की अधिष्ठात्री देवी माहात्रिपुर सुन्दरी है। अतः यन्त्र को प्रणाम करने के बाद देवी के धयान हेतु निम्न श्लोक का पाठ करना चाहिए-
बालार्कायुत तैजसं त्रिनयनां रक्ताम्लरोल्लसिनीं,
नानालंकृति राजमानवपुषं बालेन्दु युक शेखराम्।
हस्तैरिक्षु धनु सृणिं सुरशरं पाशं मुद्रा निभ्रतीम,
श्री चक्रस्थति सुन्दरीम त्रिजगतामाधार भूतां भजे ॥
उक्त श्लोक द्वारा देवी का धयान करने के उपरान्त श्रीयन्त्र की पूजा करें। पूजा में पुष्प, अक्षत, धुप दीप तथा नेवैद्य अर्पित करना चाहिए । इसके पश्चात निचे लिखे हुए मन्त्र को 108 बार जपें। जप के लिए रुद्राक्ष, मुगां अथवा लाल चन्दन की माला उत्तम होती है।
मन्त्र
श्री यन्त्र की कृपाप्राप्ति के लिए इस मन्त्र का जप करना चाहिए । धयान रहे कि मन्त्र का उच्चारण बहुत ही शांत स्थिर चित से और शुद्धतापूर्वक किया जाय्। जप का स्थान स्वच्छ, एकांत, हवादार और पवित्र हो। गन्दगी, कोलाहत और विघ्नबाधा से बचने हेतु पहले ही सावधानी बरतना अच्छा रहता है। जो व्यक्ति इस मन्त्र का दैनिक जप करते हुए श्री यन्त्र का पूजन करता है-उसे भौतिक रुप से पर्याप्त समृद्धि तथा आधयात्मिक शान्ति प्राप्त होती है।

मन्त्र- ह्रीं क ए ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं,

मन्त्र पाठ में एक-एक अक्षर पर थोङा विराम देते हुए, अबाध गति से इसे पूर्ण करना चाहिए । जिस प्रकार वाक्य पढते समय प्रत्येक शब्द पर विराम रहता है, ठीक उसी भांति इसका उच्चारण होना चाहिए । इस मंत्र का प्रत्येक अक्षर 'ब्रीज' है और वह अपने में बहुत व्यापक अर्थ समाहित किए हुए है।
108 बार जप पूरा ही जाने पर फिर से यन्त्र को प्रणाम करें और पूजा-समापन कर परिक्रमा करके अपने दैनिक कार्यों मे लग जायें।
स्वयं न बना सकने की स्थिति में हम से ताम्रपत्र रुप मे भी यन्त्र प्राप्त करके उसकी पूजा करने से यथेष्ट लाभ होता है। इसे देव प्रतिमा की भांति कहीं भी स्थापित करके पूजने से, समृद्धि प्राप्त होती है। श्री यन्त्र जहा भी रहता है, दुख दारिद्रय को दूर करके समृद्धि और सम्पन्न्ता का विस्तार रहता है। इसीलिए वह'यन्त्रराज' कहा गया है|

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