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Wednesday 22 June 2011

विदेशी प्रथाएं वर्षा बुलाने की


विदेशी प्रथाएं वर्षा बुलाने की

भारतवर्ष के कई राज्य पिछले वर्ष सूखे की चपेट में रहे हैं। इन्द्रदेव को मनाने के लिए तरह-तरह की पूजा, अनुष्ठान और टोटके किये गये। उड़ीसा में मेंढकों की शादी रचाई गयी तो तमिलनाडु में गिद्धों का अन्तिम संस्कार किया गया। उत्तर प्रदेश में कई जगह महिलाओं द्वारा निर्वस्त्रा नग्नावस्था में हल चलाने के समाचार मिले तो कहीं बच्चों व बूढ़ों ने कींच में लोटकर वर्षा आने-बुलाने के लिए टोटके किये। ऐसी ही विभिन्न प्रथाएं हमारे देश में प्रचलित हैं।
rainbow विदेशी प्रथाएं वर्षा बुलाने कीऐसा नहीं कि भारत में ही ऐसी परम्पराएं प्रचलित हों। विदेशों में भी वर्षा के आह्वान के निए तरह-तरह के टोने-टोटके और प्रथाएं प्रचलित हैं। आइये जानें, कुछ ऐसी ही विचित्रा-रोचक प्रथाओं के बारे में।
ु न्यू कैलोफोर्निया द्वीप में वर्षा न होने पर बरसात के लिए एक अनुष्ठान किया जाता है जिसके अन्तर्गत एक ओझा किसी कब्र से मृत देह को निकाल कर उसके अस्थिपजंर को एक पेड़ पर लटका देता है। इसके बाद उस देह पर पानी की धार डालने लगता है। कहते हैं कि इस क्रिया से वर्षा हो जाती है। मान्यता है कि मृतात्मा पानी से तृप्त होकर वर्षा कर देती है।
ु पूर्वी द्वीप समूह में तो लोग अपना सिर मुण्डवा देते हैं। गंजे सिर वाले ये लोग किसी ऊंची पहाड़ी या टीले पर जमा होते हैं। वहां से सब लोग आकाश की ओर पत्थर फेंकते हैं। मान्यता है कि आकाश के चोट लगने से उसके आंसू बहेंगे यानी वर्षा होगी।
ु चीन में लोग एक बड़ा सा पुतला बनाकर मैदान में खड़ा कर देते हैं। वे इसकी, पूर्ण श्रद्धा के साथ तीन दिन तक पूजा अर्चना करते हैं। कहा जाता है इस बीच वर्षा हो ही जाती है। यदि वर्षा नहीं होती तो तीन दिन बाद उस पुतले को फूंक दिया जाता है।
ु ऐसी ही कुछ प्रथा अफ्रीका के अरबी लोगों में बताई जाती है। वे एक पुतले को सजाकर एक गांव से दूसरे गांव की यात्रा करते हैं। साथ ही वे वर्षा होने की प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि इससे वर्षा के देवता प्रसन्न होते हैं। बताया जाता है कि यह यात्रा पांच गांव पहुंचते-पहुंचते वर्षा हो ही जाती है।
ु उत्तरी अमेरिका के ‘तुलसा‘ आदिवासी क्षेत्रा में वर्षा बुलाने के लिए दो पहलवानों को मैदान में उतारकर उनकी कुश्ती कराई जाती है। एक पहलवान कहता है ‘वर्षा होगी।‘। दूसरा कहता है-वर्षा नहंीं होगी। उनके बीच तब तक कुश्ती (द्वन्द्व युद्ध) होता है, जब तक कि ‘वर्षा नहीं होगी‘ कहने वाला चित्त नहीं हो जाता। हारे हुए पहलवान को ‘नकारो‘ नामक देवता के मंदिर पर ले जाया जाता है। वहां देवता से सामूहिक क्षमा प्रार्थना करते हुए, हारे हुए पहलवान को मन्दिर के दरवाजे पर बांध दिया जाता है। यह पहलवान तब तक बंधा रहता है, जब तक वर्षा नहीं हो जाती। कहते हैं इस अनुष्ठान के 24 घण्टे के भीतर वर्षा हो ही जाती है।
ु मोरीटानिया के निवासी वर्षा बुलाने के लिए किसी पूर्व निश्चित समय पर झाडू लेकर अपने घरों से निकलते हैं। वे ‘बारिश-बारिश शब्द उच्चारित करते हुए एक दूसरे के पीछे दौड़ते हंै और पालम देवता के सामने जाकर सब झाड़ू इकट्ठा करके आग में उतार देते हैं। बताया जाता है, धुंआ आकाश में फैलने के साथ ही बादल छाने लगते हंै और कुछ ही देर में वर्षा हो जाती है।
ु म्यांमार (बर्मा) के पूर्वीभाग में बसी आदिवासी बस्ती मुण्डई में युवा वर्ग अपनी मूंछ का दाहिना भाग काट लेते हैं। उनके चेहरे पर सिर्फ आधी मूंछ (बाई ओर) ही रह जाती है। अब शुरू होता है टोटका जिसके तहत वहां की औरतें उन पुरूषो को मारते पीटते देवी मन्दिर तक ले जाती हैं। कहा जाता है कि ये पुरूष जितना ज्यादा आंसू बहायेंगे, उतनी ही ज्यादा वर्षा होगी।
ु अंत में एक बहुत विचित्रा प्रथा के बारे में चर्चा करते हैं। सोकोटा (अफ्रीका) में वर्षा बुलाने के लिए एक 5 फुट ऊंची सुराही बनाकर उसे खूब सजाया जाता है। गले तक इसमें पानी भरकर इसकी 12 घंटे तक पूजा की जाती हैं इस पूजा में क्षेत्रा के सभी पुरूष, महिला व बच्चे शामिल होते हैं।
इसके बाद एक वृद्धा को उक्त सुराही के पास आमन्त्रिात कर वर्षा बुलाने की प्रार्थना भी जाती है। फिर वृद्धा को एक माला पहनाते हैं। माला पहनते ही वह झूमने लगती है। बताया जाता है कि उस बूढ़ी महिला में दैवीय शक्ति आ जाती है। वह झूमती-नाचती जैसे ही सुराही छूती है, सुराही अपने मुंह से गर्जना करते हुए ढेर सा धुंआ उगलती है। कहते है कि पांच-दस मिनट के बाद ही वर्षा शुरू हो जाती है।
यह विश्व विचित्राताओं से भरा पड़ा है। मानव अपनी शक्ति से प्रकृति को वश में करना चाहता है किंतु उस पर नियंत्राण तो उसी शक्ति का है जिसने उसे रचा है। वही इसके रहस्य को जानता है।

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