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Friday 24 June 2011

कालसर्प दोष: एक अभिशाप

कालसर्प दोष: एक अभिशाप


कालसर्प दोष: एक अभिशाप
ज ब राहु और केतु के घेरे में अन्य सभी ग्रह आ जाएं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। इसे नागपाश योग भी कहा जाता है। कालसर्प योग से प्रभावित जातक को आजीवन भिन्न-भिन्न तरह के कष्टों, ऋण, बेरोजगारी, संतानहीनता, दाम्पत्य जीवन में सुख का अभाव आदि का सामना करना पड़ता है। यहां इस योग के मुख्य भेदों और उनके उपायों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।

अनंत कालसर्प योग: लग्न में राहु और सप्तम में केतु हो तथा शेष ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हों, तो अनंत कालसर्प योग का जन्म होता है। इसके कारण जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा एवं साथ-साथ मानसिक अशांति भी रहेगी।
उपाय: महामृत्युंजय का जाप करना लाभप्रद होगा।

कुलिक कालसर्प योग: जब द्वितीय स्थान में राहु एवं अष्टम में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को धन हानि होगी। गले के रोग परेशान करते रहेंगे। कुलिक कालसर्प योग के कारण वाणी भी प्रभावित होती रहती है एवं जातक पारिवारिक एवं कुटुम्ब के सुख में कमी महसूस करता है। परिजनों से सामजंस्य का अभाव रहता है। इस प्रकार से वह पारिवारिक रूप् से परेशान हो जाता है।
उपाय: 108 नाग-नागिन के जोड़े जल में प्रवाहित करने चाहिए।

वासुकी कालसर्प योग: जब तृतीय स्थान में राहु व नवम में केतु बैठ जाएं एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को भाई बहनों के कारण कष्ट या परेशानी बनी रहती है एवं भाग्योदय में अड़चने आती है। विलंब के कारण आर्थिक एवं मानसिक तनाव बना रहता है, चर्म रोग एवं पैरों से संबंधित रोग भी पैदा होता है। ऐसे जातक को साझेदारी का कार्य नहीं करना चाहिए।
उपाय: नागपंचमी के दिन को दूध पिलाएं।

शंखपाल कालसर्प योग: जब चतुर्थ स्थान में राहु व दशम में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को माता से वैचारिक मतभेद या माता को कष्ट, विवाह जन्म स्थान से दूर, विवाह विलंब से होने के आसार, दांपत्य जीवन के प्रारंभ, विद्या अर्जन, मकान एवं वाहन इत्यादि में कठिनाई, पैत्रिक संपŸिा के मिलने में अड़चनें, गले एवं कंधे की परेशानी एवं पारिवारिक सुख का अभाव रहता है।
उपाय: शिवलिंग पर चांदी के सर्प चढ़ाएं।

पदम् कालसर्प योग: जब पंचम स्थान में राहु व एकादश में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों दायीं या बायीं ओर हो तो जातक या जातिका को संतान उत्पŸिा में बाधा उत्पन्न होती है। जातिका का मासिक धर्म अनियमित हो जाता है। संतान सुख में विलंब करता है यौन/प्रसव संबंधी रोगों से ग्रस्त होने की आशंका रहती है एवं प्रेम विवाह में भी रुकावटें आती हैं। उच्च शिक्षा प्राप्ति में अड़चनें अर्थात् मन न लगना भी पद्म कालसर्प योग के कारण होता है।
उपाय: चांदी का ठोस हाथी शयन कक्ष में रखें।

महापद्म कालसर्प योग: जब छठे स्थान में राहु व बारहवें स्थान में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक कर्जे से बंध जाता है और बीमारी के कारण दवाईयों में पैसा खर्च होता है। जातक का अकारण ही दुश्मनी होती रहती है जिसके कारण कोर्ट कचहरी के व्यर्थ ही चक्कर लगाने पड़ते। इस प्रकार से वह भारी कर्जे से लद जाता है।
उपाय: अमावस्या के दिन पितरों को शांत कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शांति का पाठ कराएं।

तक्षक कालसर्प योग: जब सातवें स्थान में राहु व लग्न में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक का दांपत्य जीवन कष्टकारी बन जाता है। सप्तम में राहु मारक प्रभाव युक्त होता है। यहां बैठकर राहु, अलगाव, मतभेद एवं दांपत्य सुख में कमी करता है। ऐसा राहु जातक को पैतृक संपŸिा से हीन साझेदारी में धोखा एवं गुप्त रोगों से कष्ट आदि होता है।
उपाय: नाग पंचमी के दिन सांपों को दूध पिलाएं।

कर्कोटक कालसर्प योग: यदि अष्टम में राहु बैठकर कर्कोटक कालसर्प योग का निर्माण करें तो यह इसमें
बैठकर दांपत्य जीवन कष्टप्रद बनाता है तथा अलगाव या तलाक की आशंका अधिक रहती है। जातक का अपने
परिवारजनों से हमेशा ही विवाद बना रहता है। पैतृक संपŸिा से भी कुछ नहीं मिलता है। यदि अष्टम में राहु 1, 4 व 8 राशियों में हो तो जातिका को आपरेशन से संतान होती है। राहु अष्टम में बैठकर पेट संबंधी परेशानी पैदा करता है।
उपाय: 108 राहु यंत्रांे को जल में प्रवाहित करें।

शंखचूड़ कालसर्प योग: जब नवम स्थान में राहु व तृतीय भाव में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों
के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। भाग्य साथ नहीं देता है। कार्य रुक
जाता है। हर कार्य में अड़चनें आती हैं। व्यवसाय मंे स्थायित्व की कमी बनी रहती है। धर्म-संबंधी कार्यों में मन नहीं लगता है एवं पिता के साथ भी अनबन रहती है।
उपाय: महामृत्युंजय का पाठ करें व घर के द्वार पर स्वास्तिक लगाएं।

घातक कालसर्प योग: जब दसवें स्थान में राहु व चौथे स्थान में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को आजीविका की परेशानी बनी रहती है, आजीविका के स्थायी स्रोत नहीं बन
पाते हैं। सरकारी सेवारत जातक को कार्य क्षेत्र में एक परिवार में अशांति रहती है, मान-सम्मान भी प्रभावित होती
है। वैसे ऐसा राहु योगकारक माना जाता है, परंतु कालसर्प योग के कारण स्थितियां बदल जाती हैं।
उपाय: ¬ नमः शिवाय का मंत्र जाप करंे।

विषधर कालसर्प योग: जब ग्यारहवें स्थान में राहु व पंचम स्थान में केतु हो एवं बाकी ग्रह इन दोनों के
दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को आर्थिक दृष्टि से परेशानी पैदा करता है। आय के स्रोत बंद होते नजर आते
हैं। आर्थिक स्थिति डावांडोल रहती है। बड़े भाई का सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता है एवं बाएं कान की बीमारी से
ग्रसित होने की आशंका रहती है। यदि राहु के साथ शुक्र व मंगल भी हो तो जातक-जातिका के अनेकों प्रेम संबंध
होते हैं। यह कालसर्प योग वाले जातक यदि व्यवसायी हो तो लाभ हेतु भारी मशक्कत करनी पड़ती है।
उपाय: 11 शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाएं व मंत्र जाप करें।

शेषनाग कालसर्प योग: जब बारहवें स्थान में राहु व छठे स्थान में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को नेत्र रोग होने की आशंका रहती है। यहां बैठकर राहु चर्म रोग, मानसिक
परेशानियां एवं उदर विकार से प्रभावित करता है एवं साथ ही साथ आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित करता है। गुप्त
शत्रुओं से भी परेशानी होती रहती है। शेषनाग कालसर्प योग जातक को शैय्या सुख में कमी आती है।
उपाय: जातक का नव नाग स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
उपाय क्या होते हैं व कैसे करने होते हैं-
कालसर्प दोष के उपाय हेतु अलग-अलग तरीके दिए गए हैं, परंतु कोई भी जातक किसी भी प्रकार के उपाय करते समय सावधानियां बरते, क्योंकि कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखकर ही सटीक उपाय किए जाते हैं। उदाहरणस्वरूप, यदि किसी की कुंडली में राहु लग्न में बैठकर कालसर्प योग का निर्माण योग का निर्माण कर रहा है, तो हमें अन्य ग्रहों की स्थिति पर भी विचार करना चाहिए, क्योंकि एक बार उपाय करने के उपरांत ग्रहों को स्थापित कर दिया जाता है। यदि किसी भी प्रकार से किसी अयोग्य ज्योतिषी से ग्रहों को स्थापित कराने में त्रुटि हो जाती है, तो एक वर्ष के लिए उसके खराब फल अवश्य मिलेंगे। अतः बड़ा ही सोच-समझकर किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श करके कालसर्प दोष के उपाय करें। कालसर्प दोष की शांति हेतु नक्षत्र, योग, दिन, दिशा एवं समय का विशेष ध्यान रखा जाता है, तभी उपाय भी फलीभूत होते हैं।

कालसर्प योग बारे में भ्रमित होना: यदि किसी की कुंडली में राहु या केतु के साथ अन्य ग्रहों की युति है, तो उन ग्रहों की डिग्री देखें। कालसर्प योग कह देना गलत होगा। यदि किसी भी एक ग्रह की डिग्री राहु से कम है एवं उसी घर में बैठे दूसरे ग्रह की डिग्री राहु से ज्यादा है तो कालसर्प
योग नहीं होगा। यदि राहु-केतु के घेरे से एक भी ग्रह बाहर हो तो भी कालसर्प योग नहीं होगा।

कालसर्प दोष: एक अभिशापसतीश कुमार
ज ब राहु और केतु के घेरे में अन्य सभी ग्रह आ जाएं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। इसे नागपाश योग भी कहा जाता है। कालसर्प योग से प्रभावित जातक को आजीवन भिन्न-भिन्न तरह के कष्टों, ऋण, बेरोजगारी, संतानहीनता, दाम्पत्य जीवन में सुख का अभाव आदि का सामना करना पड़ता है। यहां इस योग के मुख्य भेदों और उनके उपायों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।

अनंत कालसर्प योग: लग्न में राहु और सप्तम में केतु हो तथा शेष ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हों, तो अनंत कालसर्प योग का जन्म होता है। इसके कारण जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा एवं साथ-साथ मानसिक अशांति भी रहेगी।
उपाय: महामृत्युंजय का जाप करना लाभप्रद होगा।

कुलिक कालसर्प योग: जब द्वितीय स्थान में राहु एवं अष्टम में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को धन हानि होगी। गले के रोग परेशान करते रहेंगे। कुलिक कालसर्प योग के कारण वाणी भी प्रभावित होती रहती है एवं जातक पारिवारिक एवं कुटुम्ब के सुख में कमी महसूस करता है। परिजनों से सामजंस्य का अभाव रहता है। इस प्रकार से वह पारिवारिक रूप् से परेशान हो जाता है।
उपाय: 108 नाग-नागिन के जोड़े जल में प्रवाहित करने चाहिए।

वासुकी कालसर्प योग: जब तृतीय स्थान में राहु व नवम में केतु बैठ जाएं एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को भाई बहनों के कारण कष्ट या परेशानी बनी रहती है एवं भाग्योदय में अड़चने आती है। विलंब के कारण आर्थिक एवं मानसिक तनाव बना रहता है, चर्म रोग एवं पैरों से संबंधित रोग भी पैदा होता है। ऐसे जातक को साझेदारी का कार्य नहीं करना चाहिए।
उपाय: नागपंचमी के दिन को दूध पिलाएं।

शंखपाल कालसर्प योग: जब चतुर्थ स्थान में राहु व दशम में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को माता से वैचारिक मतभेद या माता को कष्ट, विवाह जन्म स्थान से दूर, विवाह विलंब से होने के आसार, दांपत्य जीवन के प्रारंभ, विद्या अर्जन, मकान एवं वाहन इत्यादि में कठिनाई, पैत्रिक संपŸिा के मिलने में अड़चनें, गले एवं कंधे की परेशानी एवं पारिवारिक सुख का अभाव रहता है।
उपाय: शिवलिंग पर चांदी के सर्प चढ़ाएं।

पदम् कालसर्प योग: जब पंचम स्थान में राहु व एकादश में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों दायीं या बायीं ओर हो तो जातक या जातिका को संतान उत्पŸिा में बाधा उत्पन्न होती है। जातिका का मासिक धर्म अनियमित हो जाता है। संतान सुख में विलंब करता है यौन/प्रसव संबंधी रोगों से ग्रस्त होने की आशंका रहती है एवं प्रेम विवाह में भी रुकावटें आती हैं। उच्च शिक्षा प्राप्ति में अड़चनें अर्थात् मन न लगना भी पद्म कालसर्प योग के कारण होता है।
उपाय: चांदी का ठोस हाथी शयन कक्ष में रखें।

महापद्म कालसर्प योग: जब छठे स्थान में राहु व बारहवें स्थान में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक कर्जे से बंध जाता है और बीमारी के कारण दवाईयों में पैसा खर्च होता है। जातक का अकारण ही दुश्मनी होती रहती है जिसके कारण कोर्ट कचहरी के व्यर्थ ही चक्कर लगाने पड़ते। इस प्रकार से वह भारी कर्जे से लद जाता है।
उपाय: अमावस्या के दिन पितरों को शांत कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शांति का पाठ कराएं।

तक्षक कालसर्प योग: जब सातवें स्थान में राहु व लग्न में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक का दांपत्य जीवन कष्टकारी बन जाता है। सप्तम में राहु मारक प्रभाव युक्त होता है। यहां बैठकर राहु, अलगाव, मतभेद एवं दांपत्य सुख में कमी करता है। ऐसा राहु जातक को पैतृक संपŸिा से हीन साझेदारी में धोखा एवं गुप्त रोगों से कष्ट आदि होता है।
उपाय: नाग पंचमी के दिन सांपों को दूध पिलाएं।

कर्कोटक कालसर्प योग: यदि अष्टम में राहु बैठकर कर्कोटक कालसर्प योग का निर्माण करें तो यह इसमें
बैठकर दांपत्य जीवन कष्टप्रद बनाता है तथा अलगाव या तलाक की आशंका अधिक रहती है। जातक का अपने
परिवारजनों से हमेशा ही विवाद बना रहता है। पैतृक संपŸिा से भी कुछ नहीं मिलता है। यदि अष्टम में राहु 1, 4 व 8 राशियों में हो तो जातिका को आपरेशन से संतान होती है। राहु अष्टम में बैठकर पेट संबंधी परेशानी पैदा करता है।
उपाय: 108 राहु यंत्रांे को जल में प्रवाहित करें।

शंखचूड़ कालसर्प योग: जब नवम स्थान में राहु व तृतीय भाव में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों
के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। भाग्य साथ नहीं देता है। कार्य रुक
जाता है। हर कार्य में अड़चनें आती हैं। व्यवसाय मंे स्थायित्व की कमी बनी रहती है। धर्म-संबंधी कार्यों में मन नहीं लगता है एवं पिता के साथ भी अनबन रहती है।
उपाय: महामृत्युंजय का पाठ करें व घर के द्वार पर स्वास्तिक लगाएं।

घातक कालसर्प योग: जब दसवें स्थान में राहु व चौथे स्थान में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को आजीविका की परेशानी बनी रहती है, आजीविका के स्थायी स्रोत नहीं बन
पाते हैं। सरकारी सेवारत जातक को कार्य क्षेत्र में एक परिवार में अशांति रहती है, मान-सम्मान भी प्रभावित होती
है। वैसे ऐसा राहु योगकारक माना जाता है, परंतु कालसर्प योग के कारण स्थितियां बदल जाती हैं।
उपाय: ¬ नमः शिवाय का मंत्र जाप करंे।

विषधर कालसर्प योग: जब ग्यारहवें स्थान में राहु व पंचम स्थान में केतु हो एवं बाकी ग्रह इन दोनों के
दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को आर्थिक दृष्टि से परेशानी पैदा करता है। आय के स्रोत बंद होते नजर आते
हैं। आर्थिक स्थिति डावांडोल रहती है। बड़े भाई का सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता है एवं बाएं कान की बीमारी से
ग्रसित होने की आशंका रहती है। यदि राहु के साथ शुक्र व मंगल भी हो तो जातक-जातिका के अनेकों प्रेम संबंध
होते हैं। यह कालसर्प योग वाले जातक यदि व्यवसायी हो तो लाभ हेतु भारी मशक्कत करनी पड़ती है।
उपाय: 11 शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाएं व मंत्र जाप करें।

शेषनाग कालसर्प योग: जब बारहवें स्थान में राहु व छठे स्थान में केतु बैठ जाए एवं बाकी ग्रह इन दोनों के दायीं या बायीं ओर हो तो जातक को नेत्र रोग होने की आशंका रहती है। यहां बैठकर राहु चर्म रोग, मानसिक
परेशानियां एवं उदर विकार से प्रभावित करता है एवं साथ ही साथ आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित करता है। गुप्त
शत्रुओं से भी परेशानी होती रहती है। शेषनाग कालसर्प योग जातक को शैय्या सुख में कमी आती है।
उपाय: जातक का नव नाग स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
उपाय क्या होते हैं व कैसे करने होते हैं-
कालसर्प दोष के उपाय हेतु अलग-अलग तरीके दिए गए हैं, परंतु कोई भी जातक किसी भी प्रकार के उपाय करते समय सावधानियां बरते, क्योंकि कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखकर ही सटीक उपाय किए जाते हैं। उदाहरणस्वरूप, यदि किसी की कुंडली में राहु लग्न में बैठकर कालसर्प योग का निर्माण योग का निर्माण कर रहा है, तो हमें अन्य ग्रहों की स्थिति पर भी विचार करना चाहिए, क्योंकि एक बार उपाय करने के उपरांत ग्रहों को स्थापित कर दिया जाता है। यदि किसी भी प्रकार से किसी अयोग्य ज्योतिषी से ग्रहों को स्थापित कराने में त्रुटि हो जाती है, तो एक वर्ष के लिए उसके खराब फल अवश्य मिलेंगे। अतः बड़ा ही सोच-समझकर किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श करके कालसर्प दोष के उपाय करें। कालसर्प दोष की शांति हेतु नक्षत्र, योग, दिन, दिशा एवं समय का विशेष ध्यान रखा जाता है, तभी उपाय भी फलीभूत होते हैं।

कालसर्प योग बारे में भ्रमित होना: यदि किसी की कुंडली में राहु या केतु के साथ अन्य ग्रहों की युति है, तो उन ग्रहों की डिग्री देखें। कालसर्प योग कह देना गलत होगा। यदि किसी भी एक ग्रह की डिग्री राहु से कम है एवं उसी घर में बैठे दूसरे ग्रह की डिग्री राहु से ज्यादा है तो कालसर्प
योग नहीं होगा। यदि राहु-केतु के घेरे से एक भी ग्रह बाहर हो तो भी कालसर्प योग नहीं होगा।

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